Tuesday 27 December 2011

'विनाशकाले Intellectual बुद्धि' .... एक उत्तर ... धर्म-निरपेक्षी SICKULARS के लिए .... जो दोगली मानवता की बात करते हैं l

आजकल Sickular लोगों की बाढ़ सी आ गई है ... जिसे देखो सनातन धर्म पर आये हुए संकटों को अनदेखा कर ... मानवता का उपदेश देने में लगा हुआ है,
ये वो लोग हैं ... जिन्हें वसुधैव कुटुम्बकम और सर्व धर्म समभाव के आगे कुछ भी कहना नहीं आता,
इन दो श्लोकों में ही इनका मानवता का ज्ञान पूरा हो जाता है l

जिनसे कभी गीता के ज्ञान की बात करो तो ... भी केवल दो ही श्लोक याद आएंगे,
1. आत्मा अजर है, अमर है ....
2. कर्म कर... फल की चिंता मत कर
बस.... हो गया पूरा गीता का ज्ञान, हो गया जीवन सफल

गीता के ज्ञान की बात करते हुए अज्ञानी लोग यह क्यों भूल जाते हैं की भगवन श्री कृष्ण ने ही एक और उपदेश दिया था कि "हे पार्थ! जब शत्रु सामने खडा हो, जो घातक अस्त्रों - शस्त्रों के साथ हो, उससे दया कि आशा नहीं करनी चाहिए,
इससे पहले कि वो तुम पर आक्रमण करे और कोई घातक प्रहार करे ... आगे बढ़ कर उसका संहार करो l "

धर्म रक्षा हेतु समय समय पर शस्त्र उठाने की शिक्षा भी भगवान श्री कृष्ण ने ही दी l
पर मानवता की बात करने वाले मुसलमान - ईसाईयों के द्वारा मिलने वाले पारिश्रमिक पर जीने वाले .... नकली हिन्दुओं को यह ज्ञान समझ में नहीं आते ..... क्योंकि .... विनाशकाले INTELLECTUAL बुद्धि ...
अतः ऐसे समस्त Sickulars के लिए एक छोटा सा उत्तर है, जो अपने आप में समस्त पापी जीव्हाओं को तत्काल प्रभाव से काट सकता है l

प्रसंग महाभारत का है ...
कर्ण कौरवों का सेनापति था और अर्जुन के साथ उसका घनघोर युद्ध जारी था l
कर्ण के रथ का एक चक्का जमीन में फंस गया l
उसे बाहर निकलने के लिए कर्ण रथ के नीचे उतरा और अर्जुन को उपदेश देने लगा - "कायर पुरुष जैसे व्यवहार मत करो, शूरवीर निहत्थों पर प्रहार नहीं किया करते l धर्म के युद्ध नियम तो तुम जानते ही हो l तुम पराक्रमी भी हो l
बस मुझे रथ का यह चक्का बाहर निकलने का समय दो l मैं तुमसे या श्री कृष्ण से भयभीत नहीं हूँ, लेकिन तुमने क्षत्रीय कुल में जन्म लिया है, श्रेष्ठ वंश के पुत्र हो l हे अर्जुन ..... थोड़ी देर ठहरो "

परन्तु भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को ठहरने नहीं दिया, उन्होंने कर्ण को जो उत्तर दिया वो नित्य स्मरणीय है ....
उन्होंने कहा " नीच व्यक्तियों को संकट के समय ही धर्म की याद आती है l
द्रौपदी का चीर हरण करते हुए,
जुए के कपटी खेल के समय,
द्रौपदी को भरी सभा में अपनी जांघ पर बैठने का आदेश देते समय,
भीम को सर्प दंश करवाते समय,
बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद लौटे पांडवों को उनका राज्य वापिस न करते समय,
16 वर्ष की आयु के अकेले अभिमन्यु को अनेक महारथियों द्वारा घेरकर उसे मृत्यु मुख में डालते समय .... तुम्हारा धर्म कहाँ गया था ?

श्री कृष्ण के प्रत्येक प्रश्न के अंत में मार्मिक प्रश्न "क्व ते धर्मस्तदा गतः " ... पूछा गया है l

इस प्रश्न से कर्ण का मन विच्छिन्न हो गया l
श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा "वत्स, देखते क्या हो, चलाओ बाण l इस व्यक्ति को धर्म की चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है "

सनातन इतिहास साक्षी है की समस्त शूरवीरों ने ऐसा ही किया है l

शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा दरबार में लाने की प्रतिज्ञा लेकर निकले अफजल खान ने बिना किसी कारण के तुलजापुर और पंढरपुर के मन्दिरों को नष्ट किया था, उसकी यह रणनीति थी की शिवाजी खिसियाकर रणभूमि में में आ जाएँ l परन्तु शिवाजी की रणनीति यह रही की अफ्ज्ल्खान को जावली के जंगलों में खींच लाया जाए, अंततः शिवाजी की रणनीति और रणकौशल सफल हुआ, अफजल खान प्रतापगढ़ पहुंचा और शिवाजी ने उसे यम-सदन भेज कर विजय प्राप्त की l शिवाजी की इस रणनीति को कपट नीति कहने वाले 'मिशनरी-हिन्दू-इतिहासकारों' और 'मुस्लिम-हिन्दू-इतिहासकारों' को विजय का महत्त्व नहीं पता l
सनातन इतिहास में शूरवीरों का आदमी साहस, पराक्रम, बलिदान, योगदान आदि सब अतुलनीय है... परन्तु इस बलिदान, योगदान, पराक्रम, शूरवीरता और साहस को विजय का जो फल मिलना चाहिए वह सम्भव नहीं हुआ .... यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है l

यह सचमुच दुर्भाग्य की बात है की सनातन भारत के नागरिकों को उनका गौरवशाली इतिहास न पढ़ा कर पैशाचिक मुगलकालीन इतिहास को अत्यंत महत्त्व दिया जाता है और सनातन पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास से दूर जाकर पैशाचिक चकाचौंध से मंत्रमुग्ध होती जा रही है l
पैशाचिक धर्मों के षड्यंत्रों से अनजान ये पीढ़ी .... खोखली मानवता की बात करती है तो उनसे यह पूछने की जिज्ञासा होती है कि अपने धार्मिक ग्रन्थों की उनको कितनी समझ है l

पिता की आज्ञा को शिरोधार्य क्र राजपद का त्याग करनेवाले भगवन मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम,
असली उत्तराधिकारी के वनों में रहने तक वल्कल वस्त्र धारण करते हुए घास फूस कि शैय्या पर सोनेवाले ब्रह्म-अवतार भरत,
समस्त विश्व को श्रीमद्भागवद्गीता का ज्ञान देने वाले सच्चिदानन्द सत्यनारायन भगवान श्री कृष्ण,
स्वप्न में दिया वचन पूर्ण करने वाला सत्यवादी हरिश्चन्द्र,
शरण में आये कबूतर के प्राण बचने हेतु बाज के भार सामान अपना मांस देने वाले रजा शिवी,
देवताओं की विजय के लिए अपनी अस्थियाँ देने वाले महर्षि दधीची,
ह्रदय से पति माने व्यक्ति का एक वर्ष बाद होने वाले निधन को जानते हुए भी उससे ही विवाह करने वाली और साक्षात् यमराज से विवाद करने और अपने पति को प्राप्त करने वाली सावित्री,
सारी सम्पती ठुकरा कर आत्मज्ञान के मार्ग का अनुसरण करने वाली मैत्रेयी,
पिता कि ख़ुशी के लिए आजीवन अविवाहित रहने कि 'भीषण' प्रतिज्ञा लेने वाले देवव्रत ... पितामह भीष्म,
स्वतंत्रता के लिए लिए भटकते फिरते महाराणा प्रताप,
राजपुत्र के लिए अपने पुत्र का बलिदान देने वाली पन्ना धाय,
राजा द्वारा अन्यायपूर्वक पिता को हाथी के पैरों तले कुचलवाने के बाद भी अपनी सारी सम्पत्ति राजा के लिए दान करने वाला खंडो बल्लाल,
स्वतंत्रता के लिए फांसी के फंदे को गलहार समझकर उसे चूमकर परम-वीरगति को प्राप्त होने वाले हमरे शूरवीर स्वतंत्र सेनानी - क्रन्तिकारी,

उपरोक्त सभी हमारे आदर्श हैं,

सत्य, शील, स्वामिनिष्ठा, धर्मनिष्ठा, त्याग, बलिदान, आदमी साहस, पराक्रम, विजय आदि मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने के लिए जिन शूरवीरों ने अपना अपना अपना त्याग किया वे सब हमारे आदर्श हैं l
इन सारे आदर्शों ने जिन मूल्यों कि स्थापना कि उन मूल्यों कि रचना .... यानी ... संस्कृति l

संस्कृति और कुछ नहीं होती ...संस्कृति माने जीवन मूल्यों कि मालिका l
जिनके लिए हमें जीवित रहने में आनन्द हो और मृत्यु में भी गौरव मिले, ऐसे मूल्यों की परंपरा ही संस्कृति होती है l
इन मूल्यों की रक्षा का अर्थ ही संस्कृति की रक्षा करना होता है l
ऐसे मूल्यों की परम्परा ही संस्कृति का घ्योतक है l

समय के साथ अनेक परिवर्तन होते हैं, पोशाकों में बदलाव आयेगा, घरों की रचना में बदलाव आयेगा, खानपान के तरीके भी बदलेंगे.....
परन्तु जीवन मूल्य तथा आदर्श जब तक कायम रहेंगे तब तक संस्कृति भी कायम कहेगी l यही संस्कृति राष्ट्रीयता का आधार होती है ....
राष्ट्रीयता का पोषण यानि संस्कृति का पोषण होता है .... इसे ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहा जाता है l

ॐ सर्वोपरि सर्वगुण संपन्न सनातन वैदिक सनातन धर्मं....

|| सनातनधर्मः महत्मो विश्व्धर्मः ||

"विश्व महाशक्ति बनना हमारा पौराणिक जन्मसिद्ध अधिकार है, और हम इस पद को लेकर रहेंगे ।"

हम विश्व धर्म हैं,
हम विश्व राष्ट्र हैं,
हम विश्व प्राणी हैं,
हम विश्वात्मा हैं,
हम सनातन हैं,
हम विश्वगुरु हैं,
हम विश्वशक्ति हैं....

जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ

Tuesday 13 December 2011

माँसाहार अर्थात शैतान का प्रसाद .... वैश्विक अशान्ति का घर

माँसाहार अर्थात शैतान का प्रसाद .... वैश्विक अशान्ति का घर

माँसाहार को यदि "शैतान का प्रसाद" या  "अशान्ति का घर" कहा जाये, तो शायद कुछ गलत नहीं होगा. डा. राजेन्द्र प्रसाद जी नें एक बार कहा था कि "अगर संसार में शान्ति कायम करनी है तो उसके लिए दुनिया से माँसाहार को समाप्त करना होगा. बिना माँसाहार पर अंकुश लगाये ये संसार सदैव अशान्ति का घर ही बना रहेगा".


डा. राजेन्द्र प्रसाद जी नें कितनी सही बात कही है. ये कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि माँसाहार के चलते दुनिया में शान्ति कायम नहीं रह सकती. शाकाहारी नीति का अनुसरण करने से ही पृथ्वी पर शान्ति, प्रेम, और आनन्द को चिरकाल तक बनाये रखा जा सकता है, अन्यथा नहीं.
पश्चिमी विद्वान मोरिस सी. किघली का भी कुछ ऎसा ही मानना है. उनके शब्दों में कहा जाए, तो " यदि पृथ्वी पर स्वर्ग का साम्राज्य स्थापित करना है तो पहले कदम के रूप में माँस भोजन को सर्वथा वर्जनीय करना होगा, क्योंकि माँसाहार अहिँसक समाज की रचना में सबसे बडी बाधा है".

आज जहाँ शाकाहार की महत्ता को स्वीकार करते हुए माँसाहार के जनक पश्चिमी राष्ट्रों तक में शाकाहार को अंगीकार किया जाने लगा है, उसके पक्ष में आन्दोलन छेडे जा रहे हैं, जिसके लिए न जाने कितनी संस्थायें कार्यरत हैं. पर अफसोस! भगवान राम और कृष्ण के भक्त, शाकाहारी हनुमान जी के आराधक, भगवान महावीर के 'जितेन्द्रिय', महर्षि दयानन्द जी के अहिँसक आर्य समाजी और रामकृष्ण परमहँस के 'चित्त परिष्कार रेखे' देखने वाले इस देश भारत की पावन भूमी पर "पूर्णत: शुद्ध शाकाहारी होटलों" को खोजने तक की आवश्यकता आन पडी है. आज से सैकडों वर्ष पहले महान दार्शनिक सुकरात नें बिल्कुल ठीक ही कहा था, कि-----"इन्सान द्वारा जैसे ही अपनी आवश्यकताओं की सीमाओं का उल्लंघन किया जाता है, वो सबसे पहले माँस को पथ्य बनाता है.". लगता है जैसे सीमाओं का उल्लंघन कर मनुष्य 'विवेक' को नोटों की तिजोरी में बन्द कर, दूसरों के माँस के जरिये अपना माँस बढाने के चक्कर में लक्ष्यहीन हो, किसी अंजान दिशा में घूम रहा हो.......

आईये हम माँसाहार का परिहार करें-----"जीवो जीवस्य भोजनं" अर्थात जीव ही जीव का भोजन है जैसे फालतू के कपोलकल्पित विचार का परित्याग कर "मा हिँसात सर्व भूतानि" अर्थात किसी भी जीव के प्रति हिँसा न करें----इस विचार को अपनायें.

माँस एक प्रतीक है---क्रूरता का, क्योंकि हिँसा की वेदी पर ही तो निर्मित होता है माँस. माँस एक परिणाम है "हत्या" का, क्योंकि सिसकते प्राणियों के प्रति निर्मम होने से ही तो प्राप्त होता है--माँस. माँस एक पिंड है तोडे हुए श्वासों का, क्योंकि प्राण घोटकर ही तो प्राप्त किया जाता है--माँस. माँस एक प्रदर्शन है विचारहीन पतन का, क्योंकि जीवों के प्रति आदर( Reverence of Life) गँवाकर ही तो प्राप्त किया जाता है--माँस.
इसके विपरीत शाकाहार निर्ममता के विपरीत दयालुता, गन्दगी के विपरीत स्वच्छता, कुरूपता के विरोध में सौन्दर्य, कठोरता के विपरीत संवेदनशीलता, कष्ट देने के विपरीत क्षमादान, जीने का तर्क एवं मानसिक शान्ति का मूलाधार है.

मांसाहार बीमारियों की जड़ हैं. इससे दिल के रोग, गोउट, कैंसर जैसे अनेको रोगों की वृद्धि देखी गयी हैं और एक मिथक यह हैं की मांसाहार खाने से ज्यादा ताकत मिलती हैं इसका प्रबल प्रमाण पहलवान सुशील कुमार हैं जो विश्व के नंबर एक पहलवान हैं और पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं. आपसे ही पूछते हैं की क्या आप अपना मांस किसी को खाने देंगे. नहीं ना तो फिर आप कैसे किसी का मांस खा सकते हैं.


जो स्वयं अंधे हैं वे दूसरो को क्या रास्ता दीखायेंगे. हिन्दू जो पशु बलि में विश्वास रखते हैं खुद ही वेदों के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं. पशु बलि देने से केवल और केवल पाप लगता हैं, भला किसी को मारकर आपको सुख कैसे मिल सकता हैं. जहाँ तक वेदों का सवाल हैं मध्यकाल में कुछ अज्ञानी लोगो ने हवन आदि में पशु बलि देना आरंभ कर दिया था और उसे वेद संगत दिखाने के लिए महीधर, सायण आदि ने वेदों के कर्म कांडी अर्थ कर दियें जिससे पशु बलि का विधान वेदों से सिद्ध किया जा सके. बाद में माक्स्मुलर , ग्रिफीथ आदि पाश्चात्य लोगो ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया जिससे पूरा विश्व यह समझे की वेदों में पशु बलि का विधान हैं. आधुनिक काल में ऋषि दयानंद ने जब देखा की वेदों के नाम पर किस प्रकार से घोर प्रपंच किया गया हैं तो उन्होंने वेदों का एक नया भाष्य किया जिससे फैलाई गयी भ्रांतियों को मिटाया जा सके. देखो वेदों में पशु आदि के बारे में कितनी सुंदर बात कहीं गयी हैं-

ऋगवेद ५/५१/१२ में अग्निहोत्र को अध्वर यानि जिसमे हिंसा की अनुमति नहीं हैं कहा गया हैं.
यजुर्वेद १२/३२ में किसी को भी मारने से मनाही हैं
यजुर्वेद १६/३ में हिंसा न करने को कहा गया हैं
अथर्ववेद १९/४८/५ में पशुओ की रक्षा करने को कहा गया हैं
अथर्ववेद ८/३/१६ में हिंसा करने वाले को मारने का आदेश हैं
ऋगवेद ८/१०१/१५ में हिंसा करने वाले को राज्य से निष्काषित करने का आदेश हैं

इस प्रकार चारो वेदों में अनेको प्रमाण हैं जिनसे यह सिद्ध होता हैं की वेदों में पशु बलि अथवा मांसाहार का कोई वर्णन नहीं हैं.

रामायण , महाभारत आदि पुस्तकों में उन्हीं लोगो ने मिलावट कर दी हैं जो हवन में पशु बलि एवं मांसाहार आदि मानते थे.
वेद स्मृति परंपरा से सुरक्षित हैं इसलिए वेदों में कोई मिलावट नहीं हो सकती उसमे से एक शब्द अथवा एक मात्रा तक को बदला नहीं जा सकता.
रामायण में सुंदर कांड स्कन्द ३६ श्लोक ४१ में स्पष्ट कहाँ गया हैं की श्री राम जी मांस नहीं लेते वे तो केवल फल अथवा चावल लेते हैं.
महाभारत अनुशासन पर्व ११५/४० में रांतिदेव को शाकाहारी बताया गाय हैं.
शांति पर्व २६२/४७ में गाय और बैल को मारने वाले को पापी कहाँ गाय हैं.इस प्रकार के अन्य प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे यह भी सिद्ध होता हैं की रामायण एवं महाभारत में मांस खाने की अनुमति नहीं हैं और जो भी प्रमाण मिलते हैं वे सब मिलावट हैं.


और सबसे महत्वपूर्ण बात ....

आज प्रत्येक होटल, रेस्तरां, ढाबे आदि पर जो मांसाहार मिलता है वो इस्लाम के हलाल सिद्धांत के अनुसार काट कर परोसा जाता है... झटका नही ल हलाल यानी शैतान के नाम पर चढ़ाया गया प्रसाद ... क्या आप ये प्रसाद ग्रहण करना चाहेंगे ?
और यदि कर रहे हैं तो आप सीधे सीधे ... इस्लामी शैतान में आस्था प्रकट कर रहे हैं ...


अब ये आप को सोचना है कि क्या आप अब भी माँस जैसे इस जड युगीन अवशेष से अपनी क्षुधा एवं जिव्हा लोलुपता को शान्त करते रहना चाहेंगें....................


जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ

Saturday 3 December 2011

धर्म निरपेक्ष तो पशु भी नहीं होते ...

संसार में कोई भी नीच से नीच मनुष्य भी धर्म-निरपेक्ष हो ही नहीं सकता, क्योंकि कोई भी मनुष्य मानवीय  गुणों से हीं नहीं है l
धर्म यानी धारण करने योग्य मानवीय गुण जिसके मुख्य लक्ष्ण होते हैं ...
1. धैर्य
2. क्षमा
3. मन पर काबू
4. चोरी न करना
5. मन व् शरीर की पवित्रता
6. इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना
7. बुद्धि को स्वाध्याय सत्संग से बढ़ाना
8. विद्वान होना व् ज्ञान को स्वाध्याय सत्संग से बढ़ाना
9. सत्य बोलना
10. क्रोध न करना
11. अहिंसा पर कायरता नहीं
12. परोपकार
13. मोक्ष प्राप्त करने हेतु सत कर्म करना
14. मानवता यानी चरित्रवान होना
15. दया

बहन, भाई, पिता, पुत्री, माँ, बेटा एक कमरे में सोये हैं, वे कुकर्म नही करते, इसके पीछे कौन है जो कुकर्म से रोक रहा है ?

पडोसी के घर में कोई नहीं है और आप उसके घर में चोरी नहीं करते, कौन है  जो आपको रोक रहा है ? इस कुकर्म से ...
उत्तर है ..धर्म

इन लक्षणों के बिना क्या किसी को इंसान या मानव मनुष्य कह सकते हैं ?
जिससे इन गुणों की अपेक्षा न की जा सके उसे धर्म निरपेक्ष कह सकते हैं ... पशुओं में भी इनमे से कुछ गुण होते हैं l
धर्म निरपेक्ष तो पशु से गिरे हुए को कहते हैं l  अगर कोई नेता आपको पागल बनाये की धर्म-निरपेक्ष का अर्थ सर्व धर्म सामान होता है तो फिर धर्म निरपेक्ष न कह कर सर्व धर्म समभाव ही कहना चाहिए l

धर्म निरपेक्ष तो सबसे बड़ी गाली है शायद सबसे भयंकर गाली है,
सारे नेता, जज, सरकारी अधिकारी, MP - MLA - Mayor आदि सब धर्म निरपेक्ष होने ही शोथ लेते हैं तथा चुनाव का नामांकन पात्र भरते हैं l
यह असहनीय है ,,, इसकी चर्चा करें .. प्रचार करें तथा यथासम्भव विरोध करें l
देश के प्रति कर्तव्य निभाएं ... भारत भूमि पुन्य भूमि है, ऋषि भूमि है, देव भूमि है ... वेद (ज्ञान) भूमि है ... यह कदापि धर्म  निरपेक्ष देश नहीं है l

भारत माता को धर्म निरपेक्ष घोषित करने का पाप अज्ञानी कांग्रेस ने किया था और आज भी कर रहे हैं l

बीजेपी - शिवसेना - RSS - BSP - SP  आदि सभी सह रहे हैं ... यह महान भारत माता का अपमान है ..... षड्यंत्र है

धर्म - निरपेक्ष का अर्थ होता है धर्म विरुद्ध, धर्म - विहीन यानी मानवताहीन अर्थात जिससे धर्म की अपेक्षा न की जा सके ... जो धर्म के प्रति निरपेक्ष हो l


और अब बात करते हैं सर्व धर्म समान की ...

सब धातुओं के गहने सामान नहीं होते. सोने की कीमत अलग होती है और अलुमिनियम, चांदी, पीतल लोहे आदि की कीमत अलग होती है l
सब सरकारी नौकर सामान नहीं होते ... चपरासी, क्लर्क, कलेक्टर और मंत्रियों को अलग अलग श्रेणी के नौकर माने जाते हैं l सब राजनितिक पार्टियां सामान हैं ... ऐसा कोई कहे तो .. राजनेता नाराज हो जायेंगे l अपनी पार्टी को श्रेष्ठ और अन्य पार्टियों को कनिष्ठ बताते हैं .... पर धर्म के विषय में सब धर्म सामान कहने में उनको लज्जा नही आती l
वास्तव में जैसे विज्ञान के जगत में किसी एक वैज्ञानिक की बात तब तक सच्ची नहीं मानी जाती जब तक की उसे सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक तर्क-संगत और प्रायोगिक स्टार पर सच्ची नहीं मानते l ऐसे ही धर्म के विषय पर भी किसी एक व्यक्ति के कहने से उसकी बात सच्ची नहीं मान सकते l क्योंकि उसमे अपने धर्म के प्रति राग और अन्य धर्मो के प्रति द्वेष होने की सम्भावना है l सनातन धर्म के सिवा अन्य धर्म अपने धर्म को ही सच्चा मानते हैं, दुसरे धर्मो की निंदा करते हैं l केवल सनातन धर्म ही अन्य धर्मों के प्रति उदारता और सहिष्णुता का भाव सिखाता है l इसका अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता की सब धर्म समान हैं l

गंगा का जल और ये तालाबों, कुएं या नाली का पानी समान कैसे हो सकता है l
यदि समस्त विश्व के सभी धर्मो को मानने वाले सभी धर्मों का अध्ययन करके तटस्थ अभिप्राय बताने वाले विद्वानों ने किसी धर्म को तर्क संगत और श्रेष्ठ घोषित किया हो तो उसकी महानता को सबको स्वीकार करना पड़ेगा l सम्पूर्ण विश्व में यदि किसी धर्म को ऐसी व्यापक प्रशस्ति प्राप्त हुई है तो वह है ... सनातन धर्म l
जितनी  व्यापक प्रशस्ति सनातन धर्म को मिली है उतनी ही व्यापक आलोचना ईसाईयत और इस्लाम की अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों और फिलास्फिस्तों ने की है ....

सनातन धर्म की महिमा और सच्चाई को भारत के संत और महापुरुष तो सदियों से सैद्धांतिक और प्रायोगिक प्रमाणों के द्वारा प्रकट करते आये हैं, फिर भी पाश्चात्य विद्वानों से प्रमाणित होने पर ही किसी की बात को स्वीकार करने वाले पाश्चात्य बोद्धिकों के गुलाम ऐसे भारतीय बुद्धिजीवी लोग इस लेख को पढ़कर भी सनातन धर्म की श्रेष्ठता को स्वीअक्र करेंगे तो हमे प्रसन्नता होगी  और यदि वो सनातन धर्म के महान ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे तो उनको इसकी श्रेष्ठता के अनेक सैद्धांतिक प्रमाण मिलेंगे और किसी अनुभवी पुरुष के मार्गदर्शन में साधना करेंगे तो उनको इसके सत्य के प्रायोगिक प्रमाण भी मिलेंगे l आशा है सनातन धर्मावलम्बी इस लेख को पढने के बाद स्वयम को सनातन धर्मी कहलाने पर गर्व का अनुभव करेंगे l निम्नलिखित विश्व-प्रसिद्ध विद्वानों के वचन सर्व-धर्म सामान कहने वालों के मूंह पर करारे तमाचे मारते हैं और सनातन धर्म की महत्ता प्रतिपादित करते हैं ... जैसे चपरासी, सचिव, कलेक्टर आदि सब अधिकारी समान नहीं होते .. गंगा यमुना गोदावरी कावेरी आदि नदियों का जल .. और कुएं तथा नाली का जल सामान नहीं होता ऐसे ही सब धर्म समान नहीं होते .... सबके प्रति स्नेह सदभाव रखना भारत वर्ष की विशेषता है लेकिन सर्व-धर्म सामान का भाषण करने वाले भोले भले भारत वासियों के दिलो दिमाग में तुष्टिकरण की कूटनीतिक शिक्षा-निति के और विदेशी गुलामी के संस्कार भरते हैं l



सर्वधर्म सामान कह कर अपनी ही संस्कृति का गला घोंटने के अपराध से उन सज्जनों को ये लेख बचाएगा आप स्वयं पढ़ें और औरों तक यह पहुँचाने की पावन सेवा करें l


 जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ ....
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                       



संस्कारों को नकारो नहीं ... अगली पीढ़ी का उचित चरित्र निर्माण करें

बदलते परिवेश, बदलते वातावरण, बदली शिक्षावृत्ति के कारण हमारे बच्चों का रहन -सहन एकदम बदल गया है l
पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण "Mom - Dad" वाले संस्कार बच्चों में तेजी से पनप रहे हैं, रही सही कसार टेलीविजन धारावाहिकों ने पूरी कर दी है l

आज के दादा-दादी, नाना -नानी के साथ साथ माता पिता को भी सोचना चाहिए की जो संस्कार उन्हें पूर्वजों मिले थे, क्या वे इन संस्कारों को भावी पीढी तक पंहुचा पा रहे हैं ?
हर समाज में कुछ नीतिगत बातें, कुछ परम्पराएं एवं कुछ धार्मिक मान्यताएं होती हैं जिन्हें हम संस्कार कहते हैं, इन संस्कारों को यदि भावी पीढ़ी तक न पहुचाया जाए तो ये नष्ट हो जाते हैं l

यह भी सत्य है की काल, दूरी तथा बदलते परिवेश में संस्कारों में परिवर्तन होता रहता है, नई बातें जुड़ जाती हैं और कुछ पुरानी बातें छूट जाती हैं... कुछ सुधार हो जाता है l
जैसे... प्राचीन काल में बहू ससुराल पक्ष के बड़े लोगों के सामने घूँघट निकला करती थीं, लेकिन आज के जागरूक समाज ने इसे बदल दिया है ... शर्म तो आँखों में होनी चाहिए l
घूँघट बहू के लिए परेशानी पैदा करता है.. ये तर्क उचित हो भी सकता है ... परन्तु संस्कारों का मूलस्वरूप नहीं बदलता .. और न ही बदलना चाहिए l

जिस तरह कुछ बातें बच्चों के सामने नही की जा सकतीं, वैसे ही कुछ संकोच बड़े के सामने भी रखा जाना चाहिए, बड़ों के सामने छोटों को संयमित व्यवहार घर के दुसरे छोटों को भी ऐसा करने की शिक्षा देता है l
संस्कार हमारी अस्मिता, हमारी संस्कृति और अपनेपन की पहचान है l घर के शालीन और सौम्य वातावरण का आदि व्यक्ति समाज में उसी शालीनता को लेकर पहुचता है और उसकी अपेक्षाएं भी उसी रूप में ढल जारी हैं l सौम्यता की इसी मिटटी में संस्कार फलते फूलते हैं ....

देखा जाए तो भावी पीढ़ी को संस्कृत बनाना इतना कठिन नही है, जितना कठिन हम सोचते हैं l जिन परिवारों में बचपन से ही बच्चों को नमस्कार, चरण-स्पर्श, मन्दिर जाना, धार्मिक पर्वों पर भागीदारी करने तथा पारिवारिक आयोजनों में स्मीलित होने का अवसर मिलता है, वहां बच्चे स्वतः ही दीक्षित और शिक्षित होते चले जाते हैं, लेकिन जिन परिवारों में बच्चों पर पूरा ध्यान नही दिया जाता वे संस्कार धारण में पिछड़ जाते हैं l
ऐसे माता - पिता अपने बच्चों को संस्कार शून्य बना देते हैं, हालांकि अभिभावक थोड़ी मेहनत करके ये काम कर सकते हैं, ये काम लम्बी छुट्टियों में करना चाहिए l
परिवार में प्रति माह एकाध बार पाठ, हवन, पूजा, कथा आदि जैसे आयोजन अवश्य करवाए जाएँ ...खासकर तब अवश्य हों जब बच्चे होस्टल आदि में रहते हों और वे घर वापिस आये हों... उनके मन में धर्म-कर्म के प्रति श्रद्धा भाव उपजेंगे और बढ़ेंगे l

अपने बच्चों को धर्म, सत्य और नैतिकता के साथ साथ कर्म, योग और भक्ति के सिद्धांत को समय समय पर समझाने का प्रयास करें, यह विडम्बना है की भारत का संविधान सनातन संस्कृति के अनुरूप नही है, जिसके कारण विद्यालयों में तो धर्म कर्म की शिक्षा से वंचित ही रखा जायेगा, और वर्तमान में वामपंथी, मलेच्छों और यवनों द्वारा किस प्रकार सनातन संस्कृति के इतिहास को तोड़ मोड़ कर पढ़ाया जाता है ये हम सभी जानते हैं l

आवश्यक है की अपने बच्चों के उचित चरित्र निर्माण की प्रक्रिया का आरम्भ हम स्वयं घर से ही करें... उन्हें अपने धर्म के मूल्य, सिद्धांत, शिक्षाओं, परम्पराओं, आदि का अधिक से अधिक ज्ञान दें l

सनातन संस्कृति के जितने भी आराध्य हैं, धर्म-ग्रन्थ हैं, ऋषि - आचार्य - गुरु आदि हैं उन सबके बारे में घर पर ही बताएं l
भारतीय भूमि पर जन्म लेने वाले असंख्य शूरवीरों की विजय गाथाएं बताएं, राष्ट्रप्रेम हेतु अनेकों बलिदान देने वालों की आहुतियों के बारे में बताएं... जिससे की राष्ट्र-प्रेम की भावनाएं उनमे बचपन से ही कूट कूट कर भर जाएँ और अखंड भारत के सुनहरे भविष्य में वे अपना शत-प्रतिशत योगदान दे पाएं l
पिछले 2500 वर्षों में ... 1400 वर्षों में... जितने भी आक्रमण सनातन संस्कृति और ऋषि भूमि देव तुल्य अखंड भारत पर हुए हैं, उन सबका इतिहास अधिक से अधिक बताया जाए जिससे की उन्हें विदेशी लोगों के आचरण की भली भाँती परख हो जाए l 
विशेषकर मलेच्छों और यवनों द्वारा किये गए आक्रमणों, लूटमार, हिन्दू नारियों का शारीरिक मान मर्दन, मन्दिरों का विध्वंस, मूर्तियों का अपमान ...और सबसे महत्वपूर्ण धर्मांतरण आदि के बारे में भी बताएं l
वर्तमान समय में सबसे आवश्यक विषय है लव जिहाद इसके बारे में विशेष कर अपने घर की लड़कियों को अवश्य जागरूक करें l



स्वयं का आचरण ऐसा बनाएं की बच्चे उनका अनुसरण करें जो पिता रोज घर में शराब पीता हो वो बच्चे को शराब से दूर रहने की सीख कैसे दे सकता है ?
जो माँ स्वयं मर्यादित कपडे न पहनती हो ..वो भला अपने बच्चों की क्या संस्कार दे पायेगी ?

जो बीज आज बोयेंगे उसके फल आने वाली तीन पीढीयों में दिखाई देंगे l परम्पराओं को आगे पहुचना समाज को सुरक्षित आधार देने का कार्य कर्तव्य है ...
और बच्चों को संस्कार देना वर्तमान और बुजुर्ग पीढी का नैतिक कर्तव्य भी बनता है l




अंत में एक आवश्यक प्रश्न आप सबसे ... 
क्या हम अपने बच्चों को और आने वाली पीढ़ियों को पुनः 16 संस्कार देने की प्राचीन व्यवस्था को पुनर्जीवित कर सकते हैं ?




जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ












Friday 2 December 2011

महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम की कथा

महमूद गजनवी के उत्तरी भारत को १७ बार लूटने व बर्बाद करने के कुछ समय बाद उसका भांजा सलार गाजी भारत को दारूल इस्लाम बनाने के उद्देश्य से भारत पर चढ़ आया । वह पंजाब ,सिंध, आज के उत्तर प्रदेश को रोंद्ता हुआ बहराइच तक जा पंहुचा। रास्ते में उसने लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम कराया,लाखों हिंदू औरतों के बलात्कार हुए, हजारों मन्दिर तोड़ डाले। राह में उसे एक भी ऐसाहिन्दू वीर नही मिला जो उसका मान मर्दन कर सके। इस्लाम की जेहाद की आंधी को रोक सके। बहराइच अयोध्या के पास है के राजा सुहेल देव पासी अपनी सेना के साथ सलार गाजी के हत्याकांड को रोकने के लिए जा पहुंचे । महाराजा व हिन्दू वीरों ने सलार गाजी व उसकी दानवी सेना को मूली गाजर की तरह काट डाला । सलार गाजी मारा गया। उसकी भागती सेना के एक एक हत्यारे को काट डाला गया। हिंदू ह्रदय राजा सुहेल देव पासी ने अपने धर्म का पालन करते हुए, सलार गाजी को इस्लाम के अनुसार कब्र में दफ़न करा दिया। कुछ समय पश्चात् तुगलक वंश के आने पर फीरोज तुगलक ने सलारगाजी को इस्लाम का सच्चा संत सिपाही घोषित करते हुए उसकी मजार बनवा दी।आज उसी हिन्दुओं के हत्यारे, हिंदू औरतों के बलातकारी ,मूर्ती भंजन दानव को हिंदू समाज एक देवता की तरह पूजता है। आज वहा बहराइच में उसकी मजार पर हर साल उर्स लगता हँ और उस हिन्दुओ के हत्यारे की मजार पर सबसे ज्यादा हिन्दू ही जाते हँ


क्या कहा जाए ऐसे हिन्दुओ को............?

सलार गाजी हिन्दुओं का गाजी बाबा हो गया है। हिंदू वीर शिरोमणि सुहेल देव पासी सिर्फ़ पासी समाज का हीरो बनकर रह गएँ है। और सलार गाजी हिन्दुओं का भगवन बनकर हिन्दू समाज का पूजनीय हो गया है।

महाराजा सुहेलदेव के पराक्रम की कथा कुछ इस प्रकार से है -

1001 ई0 से लेकर 1025 ई0 तक महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को लूटने की दृष्टि से 17 बार आक्रमण किया तथा मथुरा, थानेसर, कन्नौज व सोमनाथ के अति समृद्ध मंदिरों को लूटने में सफल रहा। सोमनाथ की लड़ाई में उसके साथ उसके भान्जे सैयद सालार मसूद गाजी ने भी भाग लिया था। 1030 ई. में महमूद गजनबी की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने की जिम्मेदारी मसूद ने अपने कंधो पर ली लेकिन 10 जून, 1034 ई0 को बहराइच की लड़ाई में वहां के शासक महाराजा सुहेलदेव के हाथों वह डेढ़ लाख जेहादी सेना के साथ मारा गया। इस्लामी सेना की इस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों का ऐसा आतंक विश्व में व्याप्त हो गया कि उसके बाद आने वाले 150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ।

ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी जिसका प्रारंभिक नाम भरवाइच था। इसी कारण इन्हे बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित किया जाता था। इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ मांह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया। अवध गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है। वे जाति के पासी थे, राजभर अथवा जैन, इस पर सभी एकमत नही हैं।

महाराजा सुहेलदेव का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तक फैला हुआ था। गोंडा बहराइच, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा के अंतर्गत समाहित थे। इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव के सहयोगी पासी राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे -1. रायसायब 2. रायरायब 3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6. मकरन 7. शंकर 8. करन 9. बीरबल 10. जयपाल 11. श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरखू 15. नरहर 16. भल्लर 17. जुधारी 18. नारायण 19. भल्ला 20. नरसिंह तथा 21. कल्याण ये सभी वीर राजा महाराजा सुहेल देव के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सदैव आत्मबलिदान देने के लिए तत्पर रहते थे। इनके अतिरिक्त राजा सुहेल देव के दो भाई बहरदेव व मल्लदेव भी थे जो अपने भाई के ही समान वीर थे। तथा पिता की भांति उनका सम्मान करते थे। 


महमूद गजनवी की मृत्य के पश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजी भारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सालार मसूद के मनोबल को तोड़कर रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालार सैफुद्दीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाह आदि एक बड़ी धुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर युद्व प्रारंभ हो गया जिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व राय हरगोपाल ने अपने धोड़े दौड़ाकर मसूद पर गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोट आई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन उनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी। मेरठ का राजा हरिदत्त मुसलमान हो गया तथा उसने मसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई। कन्नौज का शासक भी मसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजा गया तथा स्वयं सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरआते मसूदी के विवरण के अनुसार सतरिख (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था। एक किवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात ॠषियों का स्थान था, इसीलिए इस स्थान का सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावा, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद, अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयद इब्राहीम बारा हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त मोहम्मद सरदार को राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम बाराहजारी जिधर से गुजरते गैर मुसलमानों का बचना मुस्किल था। बचता वही था जो इस्लाम स्वीकार कर लेता था। 

आइन - ए - मसूदी के अनुसार – निशान सतरिख से लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिला बाराहजारी का मिला जो राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़ लिया बारा हजारी का। इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े लेकिन वीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों इब्राहीम बाराहजारी मारा गया। कडे क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर के राजा भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूद के पास भेजा कि वह विष से बुझी नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की इहलीला समाप्त हो जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल बसी। इस प्रयास के असफल होने के बाद कडे मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के राजाओं को संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम अपनी ओर से।

इस प्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु संदेशवाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदी बना लिए गए। इन संदेशवाहकों में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गया लेकिन नाई को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक बडी सेना के साथ कड़े मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व भोजपत्र बडी वीरता से लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयद सालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जब बहराइज के राजाओं को इस बात का पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को धेर लिया। इस पर सालार मसूद उसकी सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच अनके पिता सालार साहू का निधन हो गया।


बहराइच के पासी राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य के मूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जो बृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येक रविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। बालार्क ऋषि व भगवान सूर्य के प्रताप से इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच के नाम से जाना जाता था। सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण – राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल, हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइच शहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहित उपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदी की ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण में दोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयी रहा। पहली लड़ार्ऌ मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडार्ऌ हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगी उन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया। उन्होने राजा सुहेलदेव के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विषबुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी। ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की धुडसवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण किया तो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना के एक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्ध मे मारे गए। 


भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी। दो बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गई तथा महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में निर्णायक लड़ार्ऌ हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ार्ऌ मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव के शामिल होने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकली झील तक फैला हुआ था। 

जून, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व (मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपा तथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया। इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारो गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावी आक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा। वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पडे मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरी पर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए। सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइच के पूर्व तीन कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ के पास मार दिये गए। इनकी मृत्य 8 जून, 1034 ई 0 को हुई। अब भारतीय सेना ने राजा करण के नेतृत्व में इस्लामी सेना के केंद्र पर आक्रमण किया जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर कहा था। उसने सालार मसूद को धेर लिया। इस पर सालार सैफुद्दीन अपनी सेना के साथ उनकी सहायता को आगे बढे भयकर युद्व हुआ जिसमें हजारों लोग मारे गए। स्वयं सालार सैफुद्दीन भी मारा गया उसकी समाधि बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के उत्तर बहराइच शहर के पास ही है। शाम हो जाने के कारण युद्व बंद हो गया और सेनाएं अपने शिविरों में लौट गई। 

10 जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हिंदू सेना ने सालार मसूद गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया। इस युद्ध में सालार मसूद अपनी धोड़ी पर सवार होकर बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अधिक देर तक ठहर न सका। राजा सुहेलदेव ने शीध्र ही उसे अपने बाण का निशाना बना लिया और उनके धनुष द्वारा छोड़ा गया एक विष बुझा बाण सालार मसूद के गले में आ लगा जिससे उसका प्राणांत हो गया। इसके दूसरे हीं दिन शिविर की देखभाल करने वाला सालार इब्राहीम भी बचे हुए सैनिको के साथ मारा गया। सैयद सालार मसूद गाजी को उसकी डेढ़ लाख इस्लामी सेना के साथ समाप्त करने के बाद महाराजा सुहेल देव ने विजय पर्व मनाया और इस महान विजय के उपलक्ष्य में कई पोखरे भी खुदवाए। वे विशाल ”विजय स्तंभ” का भी निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर सके। संभवतः यह वही स्थान है जिसे एक टीले के रूप मे श्रावस्ती से कुछ दूरी पर इकोना-बलरामपुर राजमार्ग पर देखा जा सकता है।

जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ .....