Monday, 24 October 2011

औरंगजेब की मृत्यु ..... वीर छत्रसाल का शौर्य

औरंगजेब की मृत्यु    .....

14वीं और 15वीं शताब्दी में  गद्दारों के कारण कई युद्धों में हार के बाद हिन्दू महासभा द्वारा संतों की अगुवाई में यह निर्णय लिया गया की अब प्रमुख साधू संतों द्वारा व्यक्ति निर्माण का कार्य अपने हाथों में लिए जाए l

इस पुनीत कार्य हेतु बहुत से संतों ने अपना अपना राष्ट्रीय एवं धार्मिक कर्तव्य निभाते हुए समय समय पर शूरवीरों का निर्माण किया l

समर्थ गुरु रामदास जी भी इसी श्रेणी में आते हैं जिन्होंने शिवाजी का निर्माण किया l
प्राण नाथ महाप्रभु  जी ने  बुन्देलखण्ड से छत्रसाल का निर्माण किया l
ओहम नरेश को श्री राम महाप्रभु द्वारा तैयार किया गया l

शिवाजी का स्वर्गवास हो चूका था l
सम्भाजी के अंग अंग काट कर उसकी नृशंस हत्या औरंगजेब के सामने ही कर दी गई थी l

उसके बाद छापामार युद्ध प्रणाली से ही समस्त भारत में चारों और से औरंगजेब के विरुद्ध एक सामूहिक प्रयास हिन्दू महासभा द्वारा आरम्भ किया गया जिसमे की बहुत से धर्म-गुरुओं और साधू संतों द्वारा समय समय पर नीतियाँ और परामर्श भी दिए जाते रहे l

यह भी एक इतिहास ही है की औरंगजेब की सेना इतिहास में सबसे बड़ी सेना मानी जाती है, धन से भी और व्यक्तियों से भी l

छोटे छोटे प्रयास हमेशा ही किये जाते थे औरंगजेब को मारने के परन्तु वो किस्मत का भी धनी था... और भारत के गद्दारों निष्ठा का भी l

मराठा नेता संताजी और धनाजी द्वारा एक बार औरंगजेब के तम्बू की सारी रस्सियाँ ही काट
कर तम्बू ही गिरा दिया गया था, परन्तु औरंगजेब उस रात अपनी बेटी के तम्बू में था जिस कारण वो तो बच गया पर बाकी सभी मर गए l
इस अचानक हमले के बाद संता जी और धनाजी की ख्याति भी बहुत बढ़ गयी थी, हालत यह हो गयी थी की यदि कोई घोड़ा पानी नहीं पीता था तो उसे मुसलमान कहते थे की .. तूने क्या संता जी और धना जी को देख लिया है .... ??
बुन्देलखण्ड के वीर छत्रसाल ने सौगंध की हुई थी की औरंगजेब को व्यक्तिगत युद्ध में अपनी तलवार से हराएगा ..... छत्रसाल द्वारा ऐसे कई प्रयास भी किये गए परन्तु अथक प्रयासों के बावजूद वीर छत्रसाल सफल न हो पाए l

अंतत: प्राण नाथ महाप्रभु जी ने कहा की एक एक दिन भारी पड़ रहा है हिन्दुओं पर, क्योंकि औरंगजेब रोज ढाई मन जनेऊ न जला लेता था तब तक उसे नींद नहीं आती थी l
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं की ढाई मन जनेऊ एक दिन में जलाने से कितने हिन्दुओं को मारा सताया जाता होगा और कितने बड़े स्तर पर धर्म  परिवर्तन किया जाता होगा, कितनी ही औरतों का शारीरिक मान मर्दन किया जाता होगा और कितने ही मन्दिरों तथा प्रतिमाओं का विध्वंस किया जाता होगा l

प्राण नाथ महाप्रभु जी की यह बातें सुन कर छत्रसाल जी ने अपनी सौगंध वापिस लेकर कहा की आप जो कहेंगे मैं वो करूँगा आप दुखी न हों...आदेश दें l

प्राणनाथ महाप्रभु जी ने एक ख़ास प्रकार के जहर से युक्त एक खंजर दिया बुन्देलखण्ड को और सारी योजना समझाते हुए कहा की यह खंजर पूरा नहीं मारना है, नहीं तो वो तत्काल प्रभाव से मर जायेगा ..... अतः ये खंजर केवल उसको एक इंच से भी कम गहराई का घाव देते हुए लम्बा सा एक चीर ही मारना था l

जिससे की धीरे धीरे उस जहर का असर फैलेगा और औरंगजेब तडप तडप कर मरेगा l

बुन्देला वीर छत्रसाल ने इस कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दिया और जैसा प्राण नाथ महाप्रभु जी ने कहा था उसी प्रकार उसके शरीर पर एक चीर दिया.... औरंगजेब 3 महीने तक तडप तडप कर मरा और एक दिन उसके पापों का का अंत हुआ l

औरंगशाही में औरंगजेब ने स्वयम लिखा है की मुझे प्राण नाथ महाप्रभु ने और छत्रसाल ने धोखे और छल से मारा है l 

आप सबसे विनम्र अनुरोश है की अपने इतिहास को जानें, जो की आवश्यक है की अपने पूर्वजों के इतिहास जो जानें और समझने का प्रयास करें.... उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखें l

जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु  हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैं l


सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ..... जो सदैव संघर्षरत रहेंगे l


जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगे l


जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ

Sunday, 23 October 2011

इस्लामी शासन काल में षड्यंत्रिक TAX ..... और सनातन संस्कारों की हानि

इस्लामी आक्रमणों के 1200 वर्षों के इतिहास में धर्म की बहुत हानि हुई, सती प्रथा, बाल विवाह, जात पात, आदि जाने कितनी ही सामाजिक बुराइयां सनातन धर्म को छू गयीं, और काने कितनी ही विकृतियाँ सनातन धर्म को चोटिल करती रहीं l ऐसी ही कुछ बुराइयों के बारे में भारत वर्ष की इतिहास की पुस्तकों में पढ़ाया जाता है परन्तु उन्हें पढ़ कर लगता है की वो केवल उपरी ज्ञान हैं, और ज्यादातर बुराइयों को सनातन धर्म से जोड़ कर ही दिखा दिया जाता है, परन्तु ये नहीं बताया जाता की उन बुराइयों के असली कारण क्या थे, और किन कारणों से उन बुराइयों का उदय हुआ और विस्तार हुआ ?

सनातन संस्कृति के शास्त्रों के अनुसार में मनुष्यों को 16 संस्कारों के साथ अपना जीवन व्यतीत करने का आदेश दिया गया है, जिनके नियम और उद्देश्य अलग अलग हैं l इस्लामी आक्रमणों से पहले तक संस्कार प्रथा अपने नियमो के अनुसार निरंतर आगे बढ़ रही थी, परन्तु इस्लामी आक्रमणों के बाद और सफलतम अंग्रेजी स्वप्न्कार Lord McCauley ने संस्कार पद्धतियों को सनातन संस्कृति से पृथक सा ही कर दिया l
यदि सही शब्दों में कहूं तो शायाद संस्कार प्रथा लुप्तप्राय सी ही हो चुकी है l इस्लामी शासनों के कार्यकालों में किस प्रकार संस्कारों में कमी हुई इसके बारे में आप सबको कुछ बताना चाहता हूँ, कृपया ध्यान से पढ़ें और सबको पढ़ा कर जागरूक करें .... आप सबने इस्लामी शासन कालों में जजिया और महसूल के बारे में ही सुना होगा ....

परन्तु सोचने वाली बात है की क्या इस्लामी मानसिकता के अनुसार हिन्दुओं पर धर्मांतरण के लिए दबाव बनाने हेतु ये दो ही कर (TAX) काफी थे... ये सोचना ही हास्यापद होगा l इस्लामी शासन कालों में समस्त 16 संस्कारों पर TAX लगाया जाता था, जिसको की नेहरु, प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहासकारों ने भारतीय शिक्षा पद्धति की इतिहास की पुस्तकों में जगह नहीं दी l ऐसे और भी बहुत से विषय हैं जिन पर यह बहस की जा सकती है, परन्तु वो किसी और दिन करेंगे l

अरब से जब इस्लामी आक्रमण प्रारम्भ हुए तो अपनी क्रूरता, वेह्शीपन, आक्रामकता, दरिंदगी, इरान, मिस्र, तुर्की, इराक, आदि सब विजय करते हुए सनातन संस्कृति को समाप्त करने मलेच्छों द्वारा ऋषि भूमि देव तुल्य अखंड भारत पर आक्रमण किये गए l लक्ष्य केवल एक था.... दारुल हर्ब को ... दारुल इस्लाम बनाने का

और इस लक्ष्य के लिए जिस नीचता पर उतरा जाए वो सब उचित थीं इस्लामी मानसिकता के अनुसार
ऐसी ही नीच मानसिकता के अनुसार जजिया और महसूल जैसे TAXES के बाद सनातन संस्कृति के 16 संस्कारों पर भी TAX लगाया गया l
संस्कारों पर TAX लगाने का मुख्य कारण यह था की सनातन धर्म के अनुयायी TAX के बोझ के कारण अपने संस्कारों से दूर हो जाएँ l धीरे धीरे इस प्रकार के षड्यंत्रों के कारण इस्लामी कट्टरपंथीयों द्वारा अपनाई गयी इस सोच का यह लक्ष्य सिद्ध होता गया l

धीरे धीरे समय ऐसा भी आया की कुछ लोग केवल आवश्यक संस्कारों को ही करवाने लगे, और कुछ लोग संस्कारों से पूर्णतया कट से गए l

सबसे पहले आता है गर्भाधान संस्कार .....
किसी सनातन धर्म की स्त्री द्वारा जब गर्भ धारण किया जाता था तो एक निश्चित TAX इलाके के मौलवी या इमाम के पास जमा किया जाता था और उसकी एक रसीद भी मिलती थी l यदि उस TAX को दिए बिना किसी भी सनातन धर्म के अनुसायी के घर में कोई सन्तान उत्पन्न होती थी तो उसे इस्लामी सैनिक उठा कर ले जाते थे और उसकी इस्लामी नियमो के अनुसार सुन्नत करके उसे मुसलमान बना दिया जाता था l  

नामकरण संस्कार
नामकरण संस्कार का षड्यंत्र यदि देखा जाए तो सबसे महत्वपूर्ण है ...इस षड्यंत्र  को समझने में

नामकरण संस्कार में जब किसी बच्चे का नाम रखा जाता था तो उन पर विभिन्न प्रकार के के TAX निर्धारित किये गए थे ...
उदाहरण के लिए .... कुंवर व्यापक सिंह ...
इसमें "कुंवर" शब्द एक सम्माननीय उपाधि को दर्शाता है, जो की किसी राजघराने से सम्बन्ध रखता हो,
उसके बाद "व्यापक" शब्द सनातन संस्कृति के शब्दकोश का एक ऐसा शब्द है जो जब तक चलन में रहेगा तब तक सनातन संस्कृति जीवित रहेगी l
उसके बाद "सिंह"  शब्द आता है .... जो की एक वर्ण व्यवस्था या एक वंशावली का सूचक है l

कुंवर..... पर TAX 10000 रुपये
व्यापक ...पर TAX 1000 रुपये
सिंह ...... पर TAX 1000 रुपये

अब जो TAX चुकाने में सक्षम लोग थे वो अपने अपने बजट के अनुसार अपने बाचों के लिए शुभ नाम निकाल लेते थे l

समस्या वहां उत्पन्न हुई जिनके पास पैसे न हों....
अब आप सोचेंगे की ऐसे बच्चों का कोई नाम नहीं होता होगा .... ?
परन्तु ऐसा नही था ... ऐसे गरीब परिवारों के बच्चों के लिए भी नाम रखे जाने का प्रावधान था l
परन्तु ऐसे नाम उस इलाके के मौलवी या इमाम द्वारा मुफ्त में दिया जाता था और यह कडा नियम था की जो नाम इमाम या मौलवी देंगे वही रखा जायेगा .. अन्यथा दंड का प्रावधान भी होता था l

अब ज़रा सोचिये की किस प्रकार के नाम दिए जाते होंगे इलाके के मौलवी या इमाम द्वारा...

लल्लू राम,
झंडू राम,
कूड़े सिंह,
घासी राम,
घसीटा राम,
फांसी राम,
फुग्ग्न सिंह,
राम कटोरी,
लल्लू सिंह,
फुद्दू राम,
रोंदू सिंह,
रोंदू राम,
रोंदू मल,
खचेडू राम,
खचेडू मल,
लंगडा सिंह,

इस प्रकार के नाम इलाके के मौलवी और इमामो द्वारा मुफ्त में दिए जाते थे l

क्या आप ऐसे नाम अपने बच्चों के रख सकते हैं ... कभी ?? शायद नहीं ?

विवाह संस्कार के लिए  इलाके के मौलवी से स्वीकृति लेनी पडती थी, बरात निकालने, ढोल नगाड़े बजाने पर भी TAX होता था, और बरात किस किस मार्ग से जाएगी यह भी मौलवी या इमाम ही तय करते थे l
और इस्लामिक केन्द्रों के सामने ढोल नगाड़े नहीं बजाये जायेंगे, वहां पर से सर झुका कर जाना पड़ेगा l

वर्तमान समय में असम और पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों में तो यह आम बात है l

अंतिम संस्कार पर तो भारी TAX लगाया जाता था, जिसके कारण यह तक कहा जाता था कि यदि TAX देने का पैसा नहीं है तो इस्लाम स्वीकार करो और कब्रिस्तान में दफना दो l

वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, आजमगढ़, आदि क्षेत्रों में यह आम बात है l
केरल, बंगाल, असम के मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों में खुल्लम खुल्ला यह फरमान सुनाया जाता है, जहां पर प्रशासन और पुलिस द्वारा कोई सहायता नहीं उपलब्ध करवाई जाती l

इस्लामिक शासन काल में सनातन गुरुकुल शिक्षा पद्धति को भी धीरे धीरे नष्ट किया जाने लगा, औरंगजेब के शासनकाल में तो यह खुल्लम खुल्ला फरमान सुनाया गया था कि ...

किस प्रकार हिन्दुओं को मुसलमान बनाना है ?
किस किस प्रकार की यातनाएं देनी हैं ? किस प्रकार औरतों का शारीरिक मान मर्दन करना है ?
किस प्रकार मन्दिरों को ध्वस्त करना है ?
किस प्रकार मूर्तियों का विध्वंस करना है ?
मूर्तियों को तोड़ कर उन पर मल मूत्र का त्याग करके उनको मन्दिर के नीचे ही दबा देना, खासकर मंदिरों की सीढियों के नीचे, और फिर उसी के ऊपर मस्जिद का निर्माण कर दिया जाए l
मन्दिरों के पुजारियों को कटक कर दिया जाए, यदि वे इस्लाम कबूल करें तो छोड़ दिया जाए l
जितने भी गुरुकुल हैं उनको ध्वस्त कर दिया जाए और आचार्यों को तत्काल प्रभाव से मौत के घाट उतार दिया जाए l
गौशालाओं को अपने नियन्त्रण में ले लिया जाए l

कई मन्दिरों को ध्वस्त करते हुए तो वहां पर गाय काटी जाती थी l

वर्तमान समय में औरंगजेब के खुद के हाथों से लिखे ऐसे हस्तलेख हैं ..जिन पर उसके दस्तखत भी हैं l

ऐसे अत्याचारों और दमन के कारण उपनयन जैसा अति महत्वपूर्ण संस्कार भी विलुप्ति कि कगार पर पहुँचने लगा l

धीरे धीरे संस्कारों का यह सिलसिला ख़त्म सा होता चला गया, वानप्रस्थ और सन्यास संस्कारों को तो लोग भूल ही गए क्योंकि उनका अर्थ ही नहीं ज्ञात हो पाया आने वाली कई पीढ़ियों को l
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा एक बार पंजाब क्षेत्र में Survey करवाया गया था जिसके अनुसार पंजाब के कई क्षेत्र ऐसे थे जहां पर लोग गायत्री महामंत्र भी भूल चुके थे, उन्हें उसका उच्चारण तो क्या इसके बारे में पता ही नहीं था l

धीरे धीरे पंजाब और अन्य क्षेत्रों में छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा उध्वस्त मन्दिरों का निर्माण करवाया गया और कई जगहों पर आचार्यों को भेजा गया जिन्होंने धर्म प्रचार एवं प्रसार के कार्य किये l

एक महत्वपूर्ण बात सामने आती है ....
कृपया ध्यान से पढ़ें और समझें एक अनोखी कहानी जो भुला दी गयी SICKULAR भारतीय इतिहासकारों द्वारा और नेहरु की kangres द्वारा


औरंगजेब की मृत्यु के 10 वर्ष के अंदर अंदर ही मुगलिया सल्तनत मिटटी में मिल चुकी थी, रंगीले शाह अपनी रंगीलियों के लिए प्रसिद्ध था और दिन प्रतिदिन मुगलिया सल्तनत कर्जों में डूब रही थी l
रंगीले शाह को कर्ज देने में सबसे आगे जयपुर के महाराजा था l
एक बार मौका पाकर जयपुर के महाराजा ने अपना कर्जा मांग लिया l
रंगीले शाह ने बुरे समय पर जयपुर के महाराजा से सम्बन्ध खराब करना उचित न समझा, क्योंकि आगे के लिए कर्ज मिलना बंद हो सकता था जयपुर के महाराज से.. परन्तु रंगीले शाह ने जयपुर के महाराजा की रियासतों को बढ़ा कर बहुत ही ज्यादा विस्तृत कर दिया और कहा की जो नए क्षेत्र आपको दिए गए हैं आप वहां से अपना कर वसूलें जिससे की कर्ज उतर जाए l

जयपुर के महाराज के प्रभाव क्षेत्र में अब गंगा किनारे ब्रिजघाट, आगरा, बिजनौर, सहारनपुर, पानीपत, सोनीपत आदि बहुत से क्षेत्र भी सम्मिलित हो गए l
इन क्षेत्रों में संस्कारों के ऊपर लगने वाले TAX .. जजिया और महसूल आदि धार्मिक TAXES के कारण जनता त्राहि त्राहि कर रही थी, और जयपुर के महाराजा के प्रभाव क्षेत्र में आने के कारण सनातन धर्मी अपनी आशाएं लगा कर बैठे थे की अब यह पैशाचिक TAXES का सिलसिला बंद होगा l
परन्तु जयपुर के महाराजा ने TAXES वापिस नहीं लिए l



मराठा साम्राज्य के पेशवा के राजदूत दीना नाथ शर्मा उन दिनों जयपुर में नियुक्त थे, उन्होंने भरतपुर के जाट नेता बदनसिंह की मदद की और जाटों की अपनी ही एक सेना बनवा डाली, जिनको पेशवा द्वारा मान्यता भी दिलवा दी गयी और 5000 की मनसबदारी भी दिलवा दी गयी l
धीरे धीरे बदनसिंह ने अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाया और दीना नाथ शर्मा के कहने पर समस्त जगहों से मुस्लिम TAXES से पाबंदी हटवाने लगे l
जयपुर के महाराजा निसहाय हो गए क्योंकि पेशवा से सीधे टकराव उनके लिए सम्भव नहीं था l

इन्हीं दिनों ब्रिजघाट तक का क्षेत्र जाटों द्वारा मुक्त करवा लिया गया ..जिसका नाम रखा गया  गढ़मुक्तेश्वर
बदन सिंह और राजा सूरजमल ने बहुत से क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित किया और मुस्लिम अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने का कार्य किया l

फिर भी ऐसी समस्याएं यदा कडा सामने आ ही जाती थीं, की कई कई जगहों पर मुस्लिम लोग हिन्दुओं को घेरकर उनसे TAX लेते थे या फिर संस्कारों के कार्यों में विघ्न पैदा करते थे l
इस समस्या से निपटने के लिए आगे चल कर बदनसिंह के बाद राजा सूरजमल ने गंगा-महायज्ञ का आयोजन किया, जिसमे गंगोत्री से 11000 कलश मंगवाए गए गंगा जल के और उन्हें भरतपुर के पास ही सुजान गंगा के नाम से स्थापित करवाया और सभी देवी देवताओं को स्थापित करवाया गया और बहुत से मन्दिरों का निर्माण करवाया गया l


सुजान गंगा पर आने वाले कई  वर्षों तक संस्कारों के कार्य होते रहे l

1947 के बाद नेहरु और SICKULAR जमात ने मिल कर सुजान गंगा का अस्तित्व समाप्त कर दिया, उसमे आसपास के सारे गंदे नाले मिलवा दिए और आसपास की फेक्टरियों का गंदा पानी आदि उसमे गिरवा दिया l
आसपास के लोग मल-मूत्र त्याग करने लगे l
इसी वर्ष हुए एक सर्वे के अनुसार सुजान गंगा के चारों और 650 से ज्यादा लोगों द्वारा प्रतिदिन मल-मूत्र त्याग किया जाता है l




आप सबसे विनम्र अनुरोश है की अपने इतिहास को जानें, जो की आवश्यक है की अपने पूर्वजों के इतिहास जो जानें और समझने का प्रयास करें.... उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखें l

जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु  हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैं l


सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ..... जो सदैव संघर्षरत रहेंगे l


जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगे l


जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ


Tuesday, 18 October 2011

16 संस्कार .... आइये जानें हम अपने संस्कारों को

सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार 16 प्रकार के संस्कारों का उल्लेख पाया जाता है l
16 संस्कार - क्या आप जानते हैं अपने 16 संस्कारों को ???? ???? ???? ????
और 16 में से कितने संस्कारों को अपने जीवन में उतारते हैं हम सब ??

सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल सोलह संस्कार बताए गये हैं, सभी मनुष्यों के लिए 16 प्रकार के संस्कारों का उल्लेख किया गया है और उन्हें कोई भी धारण कर सकता है l समस्त मनुष्यों को अपना जीवन इन 16 संस्कारो के अनुसार व्यतीत करने की आज्ञा दी गयी है l
 संस्कार का अर्थ क्या है ?
हमारे चित, मन पर जो पिछले जन्मो के पाप कर्मो का प्रभाव है उसको हम मिटा दें और अच्छा प्रभाव को बना दे .. उसे संस्कार कहते हैं l 

प्रत्येक संस्कार के समय यज्ञ किया जाता है,
भगवान् श्री राम के संस्कार ऋषि वशिष्ठ ने करवाए थे, और भगवन श्री कृष्ण के संस्कार ऋषि संदीपनी ने करवाए थे l

एक अच्छे सभ्य समाज के लिए संस्कार अत्यंत आवश्यक, पुराने समय में जो व्यक्ति के संस्कार न हुए हो उसे अच्छा नहीं माना जाता था

संस्कार हमारे धार्मिक और सामाजिक जीवन की पहचान होते हैं।
यह न केवल हमें समाज और राष्ट्र के अनुरूप चलना सिखाते हैं बल्कि हमारे जीवन की दिशा भी तय करते हैं।
भारतीय संस्कृति में मनुष्य को राष्ट्र, समाज और जनजीवन के प्रति जिम्मेदार और कार्यकुशल बनाने के लिए जो नियम तय किए गए हैं उन्हें संस्कार कहा गया है। इन्हीं संस्कारों से गुणों में वृद्धि होती है। हिंदू संस्कृति में प्रमुख रूप से 16 संस्कार माने गए हैं जो गर्भाधान से शुरू होकर अंत्येष्टी पर खत्म होते हैं। व्यक्ति पर प्रभाव संस्कारों से हमारा जीवन बहुत प्रभावित होता है। संस्कार के लिए किए जाने वाले कार्यक्रमों में जो पूजा, यज्ञ, मंत्रोच्चरण आदि होता है उसका वैज्ञानिक महत्व साबित किया जा चुका है।

कुछ जगह ४८ संस्कार भी बताए गए हैं।
महर्षि अंगिरा ने २५ संस्कारों का उल्लेख किया है।
वर्तमान में महर्षि वेद व्यास स्मृति शास्त्र के अनुसार १६ संस्कार प्रचलित हैं।
ये है भारतीय संस्कृति के 16 संस्कार गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमन्तोन्नयन संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, मुंडन संस्कार, कर्णवेध संस्कार, उपनयन संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, केशांत संस्कार, समावर्तन संस्कार, विवाह संस्कार, विवाहाग्नि संस्कार, अंत्येष्टि संस्कार।

आइये अपने 16 संस्कारों के बारे में जानें ....

1.गर्भाधान संस्कार -
ये सबसे पहला संस्कार है l
बच्चे के जन्म  से पहले माता -पिता अपने  परिवार  के  साथ  गुरुजनों  के  साथ  यज्ञ  करते  हैं  और  इश्वर  को  प्रार्थना  करते  हैं  की  उनके  घर  अच्छे  बचे  का  जन्म  हो, पवित्र  आत्मा, पुण्यात्मा  आये l जीवन की शुरूआत गर्भ से होती है। क्योंकि यहां एक जिन्दग़ी जन्म लेती है। हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे, हमारी आने वाली पीढ़ी अच्छी हो उनमें अच्छे गुण हो और उनका जीवन खुशहाल रहे इसके लिए हम अपनी तरफ से पूरी पूरी कोशिश करते हैं।
ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि अगर अंकुर शुभ मुहुर्त में हो तो उसका परिणाम भी उत्तम होता है। माता पिता को ध्यान देना चाहिए कि गर्भ धारण शुभ मुहुर्त में हो।
ज्योतिषशास्त्री बताते हैं कि गर्भधारण के लिए उत्तम तिथि होती है मासिक के पश्चात चतुर्थ व सोलहवीं तिथि (Fourth and Sixteenth Day is very Auspicious for Garbh Dharan)। इसके अलावा षष्टी, अष्टमी, नवमी, दशमी, द्वादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवस्या की रात्रि गर्भधारण के लिए अनुकूल मानी जाती है।

 गर्भधारण के लिए उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, अनुराधा, हस्त, स्वाती, श्रवण, घनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र बहुत ही शुभ और उत्तम माने गये हैं l

ज्योतिषशास्त्र में गर्भ धारण के लिए तिथियों पर भी विचार करने हेतु कहा गया है। इस संस्कार हेतु प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथि को बहुत ही अच्छा और शुभ कहा गया है l
गर्भ धारण के लिए वार की बात करें तो सबसे अच्छा वार है बुध, बृहस्पतिवार और शुक्रवार। इन वारों के अलावा गर्भधारण हेतु सोमवार का भी चयन किया जा सकता है, सोमवार को इस कार्य हेतु मध्यम माना गया है।

ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार गर्भ धारण के समय लग्न शुभ होकर बलवान होना चाहिए तथा केन्द्र (1, 4 ,7, 10) एवं त्रिकोण (5,9) में शुभ ग्रह व 3, 6, 11 भावों में पाप ग्रह हो तो उत्तम रहता है। जब लग्न को सूर्य, मंगल और बृहस्पति देखता है और चन्द्रमा विषम नवमांश में होता है तो इसे श्रेष्ठ स्थिति माना जाता है।

ज्योतिषशास्त्र कहता है कि गर्भधारण उन स्थितियों में नहीं करना चाहिए जबकि जन्म के समय चन्द्रमा जिस भाव में था उस भाव से चतुर्थ, अष्टम भाव में चन्द्रमा स्थित हो। इसके अलावा तृतीय, पंचम या सप्तम तारा दोष बन रहा हो और भद्रा दोष लग रहा हो।
ज्योतिषशास्त्र के इन सिद्धान्तों का पालन किया जाता तो कुल की मर्यादा और गौरव को बढ़ाने वाली संतान घर में जन्

2. पुंसवन  संस्कार -
पुंसवन संस्कार के दो प्रमुख लाभ- पुत्र प्राप्ति और स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान है।
पुंसवन संस्कार गर्भस्थ बालक के लिए किया जाता है, इस संस्कार में गर्भ की स्थिरता के लिए यज्ञ किया जाता है l

3. सीमन्तोन्नयन संस्कार-
यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्च सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म आएं, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। भक्त प्रह्लाद और अभिमन्यु इसके उदाहरण हैं। इस संस्कार के अंतर्गत यज्ञ में खिचडी की आहुति भी दी जाती है l

4. जातकर्म संस्कार-
बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से गर्भस्त्रावजन्य दोष दूर होते हैं।
नालछेदन के पूर्व अनामिका अंगूली (तीसरे नंबर की) से शहद, घी और स्वर्ण चटाया जाता है।
जब नवजात शिशु जन्म लेता है तब 1% घी, 4% शहद से शिशु की जीभ पर ॐ लिखते हैं ..

5. नामकरण संस्कार-
जन्म के बाद 11वें या सौवें या 101 वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है।
सपरिवार और गुरुजनों के साथ मिल कर यज्ञ किया जाता है तथा ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष आधार पर बच्चे का नाम तय किया जाता है।
बच्चे को शहद चटाकर सूर्य के दर्शन कराए जाते हैं।
उसके नए नाम से सभी लोग उसके स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
वेद मन्त्रों में जो भगवान् के नाम दिए गए हैं, जैसे नारायण, ब्रह्मा, शिव - शंकर, इंद्र, राम - कृष्ण, लक्ष्मी, देव - देवी आदि ऐसे समस्त पवित्र नाम रखे जाते हैं जिससे बच्चे में इन नामों के गुण आयें तथा बड़े होकर उनको लगे की मुझे मेरे नाम जैसा बनना है l


6. निष्क्रमण संस्कार-
जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं।
निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना ... बच्चे को पहली बार घर से बाहर खुली और शुद्ध  हवा में लाया जाता है

7. अन्नप्राशन संस्कार-
गर्भ में रहते हुए बच्चे के पेट में गंदगी चली जाती है, उसके अन्नप्राशन संस्कार बच्चे को शुद्ध भोजन कराने का प्रसंग होता है। बच्चे को सोने-चांदी के चम्मच से खीर चटाई जाती है। यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात ६-७ महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है, इससे पहले बच्चा अन्न को पचाने की अवस्था में नहीं रहता l


8. चूडाकर्म या मुंडन संस्कार-
बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे वपन क्रिया संस्कार, मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। इससे बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है।

9. कर्णभेद या कर्णवेध संस्कार-
कर्णवेध संस्कार इसका अर्थ है- कान छेदना। परंपरा में कान और नाक छेदे जाते थे। यह संस्कार जन्म के छह माह बाद से लेकर पांच वर्ष की आयु के बीच किया जाता था। यह परंपरा आज भी कायम है। इसके दो कारण हैं,
एक- आभूषण पहनने के लिए।
दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है।
इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है।
वर्तमान समय में वैज्ञानिकों ने भी कर्णभेद संस्कार का पूर्णतया समर्थन किया है और यह प्रमाणित भी किया है की इस संस्कार से कान की बिमारियों से भी बचाव होता है l
सभी संस्कारों की भाँती कर्णभेद संस्कार को भी वेद मन्त्रों के अनुसार जाप करते हुए यज्ञ किया जाता है l

10. उपनयन संस्कार -
उप यानी पास और नयन यानी ले जाना।
गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार।
उपनयन संस्कार बच्चे के 6 - 8 वर्ष की आयु में किया जाता है, इसमें यज्ञ करके बच्चे को एक पवित्र धागा पहनाया जाता है, इसे यज्ञोपवीत या जनेऊ भी कहते हैं l बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास शिक्षा अध्ययन के लिए ले जाया जाता था। आज भी यह परंपरा है।
जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं।
फिर हर सूत्र के तीन-तीन सूत्र होते हैं। ये सब भी देवताओं के प्रतीक हैं। आशय यह कि शिक्षा प्रारंभ करने के पहले देवताओं को मनाया जाए। जब देवता साथ होंगे तो अच्छी शिक्षा आएगी ही।

अब बच्चा द्विज कहलाता है, द्विज का अर्थ होता है जिसका दूसरा जन्म हुआ हो, अब बच्चे को पढाई करने के लिए गुरुकुल भेजा जाता है l
पहला जन्म तो हमारे माता पिता ने दिया लेकिन दूसरा जन्म हमारे आचार्य, ऋषि, गुरुजन देते हैं, उनके ज्ञान को पाकर हम एक नए मनुष्य बनते हैं इसलिए इसे द्विज या दूसरा जन्म लेना कहते हैं l
यज्ञोपवीत  पहनना गुरुकुल  जाने, ज्ञानी होने, संस्कारी होने का प्रतीक है l

कुछ लोगों को ग़लतफहमी है की यज्ञोपवीत का धागा केवल ब्राह्मण लोग ही धारण अक्र्ते हैं, वास्तब में आज कल केवल ब्राह्मण ही रह गए हैं जो सनातन परम्पराओं को पूर्णतया निभा रहे हैं, जबकि पुराने समय में सभी लोग गुरुकुल में प्रवेश के समय ये यज्ञोपवीत पवित्र धागा पहनते थे..... यानी की जनेऊ धारण करते थे l

11.  वेदाररंभ या विद्यारंभ संस्कार
जीवन को सकारात्मक बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है। शिक्षा का शुरू होना ही विद्यारंभ संस्कार है। गुरु के आश्रम में भेजने के पहले अभिभावक अपने पुत्र को अनुशासन के साथ आश्रम में रहने की सीख देते हुए भेजते थे।
ये संस्कार भी उपनयन संस्कार जैसा ही है, इस संस्कार के बाद बच्चों को वेदों की शिक्षा मिलना आरम्भ किया जाता है गुरुकुल में
वर्तमान समय में हम जैसा अधिकाँश लोगों ने गुरुकुल में शिक्षा नहीं पायी है इसलिए हमे अपने ही धर्म के बारे में  बहुत बड़ी ग़लतफ़हमियाँ हैं, और ना ही वर्तमान समय में हमारे माता-पिता को अपनी संस्कृति के बारे में पूर्ण ज्ञान है की वो हमको हमारे धर्म के बारे में बता सकें, इसलिए हमारे प्रश्न मन में ही रह जाते हैं l अधिकाँश अभिभावक तो बस कभी कभी मन्दिर जाने को ही "धर्म" कह देते हैं  

ये हमारा 11वां संस्कार है, अब जब गुरुकुल में बच्चे पढने जा रहे हैं और वो वहां पर वेदों को पढ़ना आरम्भ करेंगे तो बहुत ही आश्चर्य की बात है की हम वेदों को सनातन धर्म के धार्मिक ग्रन्थ मानते हैं और गुरुकुल में बच्चों को यदि धार्मिक ग्रन्थ की शिक्षा दी जाएगी तो वो इंजीनियर, डाक्टर, वैज्ञानिक, अध्यापक, सैनिक आदि कैसे बनेंगे ?
वास्तव में हम लोगों को यह नहीं पता की जैसे अंग्रेजी डाक्टर होते हैं वैसे ही हमारे भारत वर्ष में भी वैद्य हैं l जैसे आजकल के डाक्टर रसायनों के अनुसार दवाइयां देते हैं खाने के लिए उसी प्रकार हमारे आचार्य और वैद्य शिरोमणी जड़ी बूटियों की औषधियां बनाते थे, जो की विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है..... आयुर्वेद हमारे वेदों का ही एक अंश  है l
ऐसे ही वेद के अनेक अंश हैं जैसे ... "शस्त्र-शास्त्र" ...जो भारत की युद्ध कलाओं पर आधारित हैं l
गन्धर्व-वेद ... संगीत पर आधारित है l

ये सब उपवेद कहलाते हैं l

हम सबको थोड़े अपने सामान्य ज्ञान या व्यवहारिक ज्ञान के अनुसार भी सोचना चाहिए की भारत में पुरानी संस्कृति जो भी थीं....
क्या वो बिना किसी समाज, चिकित्सक, इंजिनियर, वैज्ञानिक, अध्यापक, सैनिक आदि के बिना रह सकती थी क्या ...? बिलुल भी नहीं .... वेदों में समाज के प्रत्येक भाग के लिए ज्ञान दिया गया है l

केशांत संस्कार- केशांत संस्कार का अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम करे।


12. समवर्तन संस्कार -
समवर्तन का अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम में शिक्षा प्राप्ति के बाद ब्रह्मचारी  को फिर दीन-दुनिया में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रह्मचारी को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षो के लिए तैयार करना।
जब बच्चा (लडका या लड़की ) गुरुकुल में अपनी शिक्षा पूरी कर लेते हैं, अर्थान उनको वेदों के अनुसार विज्ञान, संगीत, तकनीक, युद्धशैली, अनुसन्धान, चिकित्सा और औषधी, अस्त्रों शस्त्रों के निर्माण, अध्यात्म, धर्म, राजनीति, समाज आदि की उचित और सर्वोत्तम शिक्षा मिल जाती है उसके बाद यह संस्कार किया जाता है l
समवर्तन संस्कार में ऋषि, आचार्य, गुरुजन आदि शिक्षा पूर्ण होने के पच्चात अपने शिष्यों से गुरु दक्षिणा भी मांगते हैं l
वर्तमान समय में इस संस्कार का एक विदूषित रूप देखने को मिलता है जिसे Convocation Ceremony कहा जाता है l

13. विवाह संस्कार- 
विवास का अर्थ है पुरुष द्वारा स्त्री को विशेष रूप से अपने घर ले जाना। सनातन धर्म में विवाह को समझौता नहीं संस्कार कहा गया है। यह धर्म का साधन है। दोनों साथ रहकर धर्म के पालन के संकल्प के साथ विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।
ये संस्कार बहुत ही महत्वपूर्ण  संस्कार  है, ये  भी  यज्ञ  करते  हुए  और  वेदों पर आधारित मन्त्रों को पढ़ते हुए किया जाता है, वेद-मन्त्रों में पति और पत्नी के लिए कर्तव्य दिए गए हैं और इन को ध्यान में रखते हुए अग्नि के 7 फेरे लिए जाते हैं l

जैसे हमारे माता पिता ने हमको जन्म दिया वैसे ही हमारा कर्तव्य है की हम कुल परम्परा को आगे बाधाएं, अपने बच्चों को सनातन संस्कार दें और धर्म की सेवा करें l
विवाह संस्कार बहुत आवश्यक है ... हमारे समस्त ऋषियों की पत्नी हुआ करती थीं, ये महान स्त्रियाँ आध्यात्मिकता में ऋषियों के बराबर थीं l

14. वानप्रस्थ संस्कार

अब 50 वर्ष की आयु में मनुष्य को अपने परिवार की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जंगल में चले जाना चाहिए और वहां पर वेदों की 6 दर्शन यानी की षट-दर्शन में से  किसी 1 के द्वारा मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, ये संस्कार भी यज्ञ करते हुए किया जाता है और  संकल्प किया जाता है की अब मैं इश्वर के ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करेंगे l

15. सन्यास संस्कार-
वानप्रस्थ संस्कार में जब मनुष्य ज्ञान प्राप्त कर लेता है उसके बाद वो सन्यास लेता है, वास्तव में सन्यास पूरे समाज के लिए लिया जाता है , प्रत्येक सन्यासी का धर्म है की वो सारे संसार के लोगों को भगवान् के पुत्र पुत्री समझे और अपना बचा हुआ समय सबके कल्याण के लिए दे दे l
सन्यासी को कभी 1 स्थान पर नही रहना चाहिए उसे घूम घूम कर साधना करते हुए लोगो के काम आना चाहिए, अब सारा विश्व ही सन्यासी का परिवार है, कोई पराया नही है l

सन्यास संस्कार 75 की वर्ष की आयु में होता है पर अगर इस संसार से वैफाग्य हो जाए तो किसी भी आयु में सन्यास लिया जा सकता है l
सन्यासी का धर्म है की वो धर्म के ज्ञान को लोगों को बांटे, ये उसकी सेवा है, सन्यास संस्कार करते समय भी यज्ञ किया जाता है वेद मन्त्र पढ़ते हुए और सृष्टि के कल्याण हेतु बाकी जीवन व्यतीत करने की प्रतिज्ञा की जाती है l

16. अंत्येष्टि संस्कार-
इसका अर्थ है अंतिम यज्ञ। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है। मृत्यु के साथ ही व्यक्ति स्वयं इस अंतिम यज्ञ में होम हो जाता है। हमारे यहां अंत्येष्टि को इसलिए संस्कार कहा गया है कि इसके माध्यम से मृत शरीर नष्ट होता है। इससे पर्यावरण की रक्षा होती है।
अन्त्येष्टी संस्कार के समय भी वेद मन्त्र पढ़े जाते हैं, पुराने समय में "नरमेध यज्ञ" जिसका वास्तविक अर्थ अन्त्येष्टी संस्कार था.. उसका गलत अर्थ निकाल कर बलि मान लिया गया था l



जय श्री राम कृष्ण परशुराम ॐ

Sunday, 2 October 2011

राष्ट्रीय मीडिया या राष्ट्रीय देशद्रोही या राष्ट्रीय दलाल

कांग्रेस और चर्च तथा अरब देशो के फेके हुए टुकड़े पर पलने वाली मीडिया के हेडलाइन का विरोधाभास :::::
आखिर नीचता और लालच की एक हद होती है >>


जरा आपलोग हमारे देश की नीच और कुत्ती मीडिया की हेडलाइन का विरोधाभास सुनिए :

1- शिव सेना या बीजेपी अगर पुणे मे मारे गए किसानो के पक्ष मे कोंग्रेसी सरकार की बख़ियाँ उधेड़ते है
तो मीडिया मे हेडलाइन होती है “अब इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है“

वही जब Raul Feroze Khan Roberto Vinci GAYandhi भट्टा पारसौल मे नौटंकी करने जाता है तो उसे बार बार केन्द्रित किया जाता है और हेडलाइन होती है

“आज राहुल गांधी ने पीड़ित किसानो का हाल चाल पूछा और मृतको के प्रति संवेदना व्यक्त की…
और माया सरकार पर जमकर बरसे” ऐसी महा हरामखोर मीडिया है हमारी .

सभी चर्च द्वारा पोषित और देश द्रोहीयों कश्मीरी अलगाववादियों के समर्थित इन चेनलों का यही हाल है भाई …. बीजेपी के नेताओ को राजनीति से प्रेरित करना, अपने डिबेट कार्यक्रमों मे बीजेपी का एक नेता और मुक़ाबले मे 2-3 कोंग्रेसी + उनके सहयोगी वामपंथि कुत्तो से लडवाकर मुद्दो को गुमराह करना, लक्ष्य होता है बीजेपी को अराष्ट्र पार्टी के रूप मे चित्रित करना, ताकि हर युवा के मुख से यही निकले बीजेपी एक नकारा पार्टी है सांप्रदायिक पार्टी है ।
और जब उन्हें करार जवाब किसी BJP प्रवक्ता द्वारा दे दिया जाता है, जहां पर जवाब देना भारी पड़ जाता है Cristian Communist Chuslim जमात के लिए.. उसी समय या तो ब्रेक कर देते हैं, या फिर मुद्दे को राजनितिक रंग देने के नाम पर खत्म कर देते हैं

इनके लिए कॉंग्रेस ने अगर 10 किलो का भ्रष्टाचार किया तो उसके सामने बीजेपी का 30 ग्राम का भ्रष्टाचार 20 किलो का हो जाएगा ….

2- अगर 10 महीने से डियूटी से अनुपस्थित और हिरासत मे दो मौत के अभियुक्त तथा जबरन फर्जी एफिडेविट बनाने के आरोपी संजीव भट्ट को पुलिस गिरफ्तार करती है तो नीच मिडिया की हेडलाईन होती है " मोदी का बदला " या " यही है मोदी की असली सद्भावना "

लेकिन अगर कांग्रेस शासित राज्यों मे किरण बेदी का प्रोमोशन सरकार रोक दे या बाबा रामदेव और आचार्य बल्क्रिशन के पीछे बदले के लिए पूरी सीबीआई लगा दे या महाराष्ट्र मे पांच पुलिस अधिकारियो को गिरफ्तार कार लिया जाये या केन्द्र सरकार "नोट फार वोट " मे उल्टे बीजेपी के सांसदों को गिरफ्तार कर ले तो फिर इस नीच मीडिया की सनसनी खेज हेडलाईन क्यों नहीं होती ?

3- आज बाबा रामदेव के सम्पति के पीछे पूरी मीडिया पड़ी है जो उन्होंने योग या दवाओ से अर्जित की है .. इसमें कोई अपराध नहीं है ..

लेकिन आज की नीच मीडिया राबर्ट वढेरा के साम्राज्य के पीछे क्यों नहीं पड़ती ? उसने सिर्फ १० साल मे खरबो की सम्पति कैसे बनाई ? उसने कौन सा जादू किया ?

मीडिया सोनिया से क्यों डरती है ? क्या उसे अपनी बोटी और हड्डी खोने का डर है ?

4- यदुरप्पा के पीछे पूरी मीडिया कई महीनो तक जैसे एक सोचा समझा आन्दोलन चलाया .. वो धार और वो मीडिया का पैनापन शीला दिछित और अशोक गहलोत के भ्रष्टाचार पर खामोश क्यों हों जाता है ??

5- गुजरात दंगो के 10 साल बीत जाने के बाद भी मीडिया जाकिया जाफरी , जाहिरा शेख , और दूसरे मुस्लिम पीडितो के लिए बहुत सद्भावना दिखाती है .. वो सद्भावना राजबाला के लिए क्यों नहीं ???

6- गुजरात दंगो के लिए आज मिडिया मोदी के लिए जिन शब्दों का उपयोग करती है वही शब्द और वही धार वो कांग्रेस के लिए सिख्ख विरोधी दंगे और भागलपुर दंगे और मुंबई दंगे के लिए क्यों नहीं इस्तेमाल करती ?

7- देगंगा में हुए निरंतर दंगो के बारे में राष्ट्रीय मीडिया द्वारा कुछ भी प्रसारित नहीं किया गया l 8- देश में तेजी से पनप रहे आतंकवादी सन्गठन PFI (Popular Front of India) की गतिविधियों के बारे में कोई समाचार नहीं दिखाया जाता, जबकि यही PFI आज दिल्ली NCR में तेजी से फ़ैल रहा है और अपनी जडें मजबूत कर रहा है l इसी PFI में SIMI और IM के आतंकवादियों को प्रवेश दिया जा रहा है l और कोई शंका नहीं की आने वाले समय में भारत के अंदर ही अंदर अल-कायदा और तालिबान से भी बड़ा आतंकवादी सन्गठन बन कर उभर जायेगा l

9 -अभी भरतपुर दंगे के लिए गहलोत को मिडिया "मुसलमानों का कातिल " क्यों नहीं कहती ?

10- जब अगस्त 2011 में मुरादाबाद में दंगे हो रहे थे तो हमारा राष्ट्रीय मीडिया इंग्लैण्ड में हो रहे दंगो की कवरेज दिखाने में व्यस्त थे, कितना जान माल का नुक्सान हुआ ये मीडिया ने नहीं दिखा क्योंकि मुसलमानों का बुरा, हिंसक, जिहादी, नीच, बलात्कारी पक्ष देख कर कहीं हिन्दू जाग न जाएँ l


आज की इस मीडिया के प्रमुख कार्य है :

1. आरएसएस को सिम्मी के कतार मे खड़ा करना

2. भगवा मे आतंकवाद ढूँढना, डिग्गी के बयानो को जानबूझकर हवा देना ताकि हिंदुओं की वाणी उसी मे बहकर हिन हो जाये….

3. हिन्दू संस्कृति मे दोष ढूँढना, अमरनाथ यात्रा को ढोंघ करार देना – फर्जी विज्ञानी को बुलाकर के अमरनाथ यात्रा का वैज्ञानिक बिन्दु देखना ताकि हिन्दू यह समझे की यह एक ढोंग है.

4. लंदन मे 4 लोग मारे तो उसे रोज दवाई की तरह दर्शकों को पिलानाऔर ठीक उसी समय मे मुरादाबाद मे भगवान शिव की यात्रा मे शामिल 4-5 हिन्दू मरे दंगो मे तो उसे बिलकुल भी नहीं बताना

5. केरल मे सत्ताधारी पार्टी के जिहादी युवक पाकिस्तानी पर्चे बांटे तो बड़ी बात नहीं है, लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी के बयान बड़ी बात है…..

6. मुहम्मद के डेन्मार्क मे बने कार्टून का गुस्सा यहाँ के मुस्लिम कोल्हापुर और हुबली मे सरकारी संपत्ति और मुर्दे हिंदुओं पर हाथ साफ करें तो इस मीडिया की हेडलाइन होती है“इनका गुस्सा जायज है किसी के धर्म की भावनाओ के साथ खिलवाड़ उचित नहीं है “वही एक सांस्कृतिक आतंकवादी एम एफ हुसेन बहुसंख्यक (?) हिंदुओं के देवी देवताओ के नग्न चित्र बनाए और उसके प्रतिकृया मे बहुसंख्यक हिंदुओं के देश मे मुट्ठी भर संगठन विरोध करें तोमीडिया उन पर तोगड़िया टेग लगाकर हुसेन के प्रति अपनी हमदर्दी बताती है….

7. गोवा मे मंदिर की मूर्तियों पर पैशाब करके “ईसा की ताकत बताना” और मूर्तियाँ ईसाई तोड़े तो कोई बात नहीं….

केरल के मुस्लिम बहुल इलाकों मे मिशनरी के गुजरने मात्र से मौत मिले तो मीडिया मे कोई हेडलाइन / बात नहीं …..क्योंकि दोनों “मित्र समुंह″ का टकराव है

8. लेकिन एक मर्द हिन्दू उड़ीसा मे ईसाई मिशनरियों को उनके कुकृत्य पर जिंदा जलाए …..तो इस मीडिया की हेडलाइन होती है”देश मे हिन्दू कट्टरपंथ बढ़ रहा है“

9. हमेशा इन्हे व्यवस्था परिवर्तन करने निकले स्वामी रामदेव मे एक चोर, पाखंडी नजर आता है

10. हर रोज कम से कम 4-5 खबरे ऐसी होती है जहां कोई पुजारी किसी मंदिर मे बलात्कार करता है, कोई हिन्दू संत ढोंगी निकलता है, आसाराम हत्यारा निकलता है आरएसएस के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन होता है, ऐसी मीडिया जिसे सिर्फ हिन्दू के अंदर ही बलात्कारी, पाखंडी, चोर नजर आता हो वो कैसे लोगो को जगाएगी ? जब कोई देश की मीडिया किसी निजी संस्थानो के हाथो मे हो तो उससे किसी भी तरह की आशा रखना व्यर्थ है ….. वह तो सिर्फ अपने आकाओ के कहने पर अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए बहुसंख्यकों को बरगलाएगी…. ताकि हिन्दू ये खबरे पढ़ पढ़ कर के अपने आप को हीन समझने लगे और मिशनरियों के लिए धर्म परिवर्तन के लिए पहली सीढी तैयार हो जाये ….

11- यदि कोई मुस्लिम या ईसाई कोई हिंदू विरोधी किताब लिखे तो वो "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" और यदि कोई हिंदू लिखे तो अपराध

महानगरो मे “हिन्दू नास्तिको” (नपुंसको) की तादात बढ़ रही है गले मे क्रॉस शोभायमान है…. वाणी मे आधुनिक कंपनी तंत्र से प्रेरित सेकुलरवाद- -

अब तो यह कहने मे भी शर्म आती है की जागो हिंदुओं जागो । क्योंकि एक भाषण मात्र से ही यदा कडा सिर्फ एक हिन्दू की आँख खुलती है लेकिन बाकी जागते हुए भी अंदर सोये रहते है … जयचंदी का जिन कहीं न कहीं उनमे हिलोरे लेता है ….

इस बात का आप कभी घमंड न करें की आपकी संख्या 70 % हैं….. इसमे से आधे तो सेकुलर "SICKULARS" की औलादे है बाकी वे जो मौन विरोध करतेहै लेकिन वोट नहीं देते है क्योंकि उन्हे अपना व्यापारिक समय प्यारा है ….

और जिस तरह से इस देश मे मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है उस हिसाब से 2060 तक हिंदू इस देश मे अल्पसंख्यक हों जायेंगे ..

जागो हिंदू जागो अपने वोट की कीमत समझो !! अपने जाति और क्षेत्र को भूल कर एक नई सुबह के लिए तैयार हों जाओ l