Tuesday 17 February 2015

List of Terrorist & Seperatist Groups in India

List of Seperatist Groups in Bharat 

This is a List of separatists groups active in our country.


1. National Democratic Front of Bodoland (NDFB)

2. United People's Democratic Solidarity (UPDS)

3. Kamtapur Liberation Organisation (KLO)

4. Bodo Liberation Tiger Force (BLTF)

5. Dima Halim Daogah (DHD)

6. Karbi National Volunteers (KNV)

7. Rabha National Security Force (RNSF)

8. Koch-Rajbongshi Liberation Organisation (KRLO)

9. Hmar People's Convention- Democracy (HPC-D)

10. Karbi People's Front (KPF)

11. Tiwa National Revolutionary Force (TNRF)

12. Bircha Commando Force (BCF)

13. Bengali Tiger Force (BTF)

14. Adivasi Security Force (ASF)

15. All Assam Adivasi Suraksha Samiti (AAASS)

16. Gorkha Tiger Force (GTF)

17. Barak Valley Youth Liberation Front (BVYLF)

18. United Liberation Front of Barak Valley

19. United National Liberation Front (UNLF)

20. People's Liberation Army (PLA)

21. People's Revolutionary Party of Kangleipak (PREPAK)

22. The above mentioned three groups now operate from a unified platform,

23. The Manipur People's Liberation Front (MPLF)

24. Kangleipak Communist Party (KCP)

25. Kanglei Yawol Kanna Lup (KYKL)

26. Manipur Liberation Tiger Army (MLTA)

27. Iripak Kanba Lup (IKL)

28. People's Republican Army (PRA)

29. Kangleipak Kanba Kanglup (KKK)

30. Kangleipak Liberation Organisation (KLO)

31. Revolutionary Joint Committee (RJC)

32. National Socialist Council of Nagaland -- Isak-Muivah (NSCN-IM)

33. People's United Liberation Front (PULF)

34. Kuki National Army (KNA)

35. Kuki Revolutionary Army (KRA)

36. Kuki National Organisation (KNO)

37. Kuki Independent Army (KIA)

38. Kuki Defence Force (KDF)

39. Kuki International Force (KIF)

40. Kuki National Volunteers (KNV)

41. Kuki Liberation Front (KLF)

42. Kuki Security Force (KSF)

43. Kuki Liberation Army (KLA)

44. Kuki Revolutionary Front (KRF)

45. United Kuki Liberation Front (UKLF)

46. Hmar People's Convention (HPC)

47. Hmar People's Convention- Democracy (HPC-D)

48. Hmar Revolutionary Front (HRF)

49. Zomi Revolutionary Army (ZRA)

50. Zomi Revolutionary Volunteers (ZRV)

51. Indigenous People's Revolutionary Alliance (IRPA)

52. Kom Rem People's Convention (KRPC)

53. Chin Kuki Revolutionary Front (CKRF)

54. Hynniewtrep National Liberation Council (HNLC)

55. Achik National Volunteer Council (ANVC)

56. People's Liberation Front of Meghalaya (PLF-M)

57. Hajong United Liberation Army (HULA)

58. National Socialist Council of Nagaland (Isak-Muivah) – NSCN(IM)

59. National Socialist Council of Nagaland (Khaplang) – NSCN (K)

60. Naga National Council (Adino) – NNC (Adino)

61. Babbar Khalsa International (BKI)

62. Khalistan Zindabad Force (KZF)

63. International Sikh Youth Federation (ISYF)

64. Khalistan Commando Force (KCF)

65. All-India Sikh Students Federation (AISSF)

66. Bhindrawala Tigers Force of Khalistan (BTFK)

67. Khalistan Liberation Army (KLA)

68. Khalistan Liberation Front (KLF)

69. Khalistan Armed Force (KAF)

70. Dashmesh Regiment

71. Khalistan Liberation Organisation (KLO)

72. Khalistan National Army (KNA)

73. National Liberation Front of Tripura (NLFT)

74. All Tripura Tiger Force (ATTF)

75. Tripura Liberation Organisation Front (TLOF)

76. United Bengali Liberation Front (UBLF)

77. Tripura Tribal Volunteer Force (TTVF)

78. Tripura Armed Tribal Commando Force (TATCF)

79. Tripura Tribal Democratic Force (TTDF)

80. Tripura Tribal Youth Force (TTYF)

81. Tripura Liberation Force (TLF)

82. Tripura Defence Force (TDF)

83. All Tripura Volunteer Force (ATVF)

84. Tribal Commando Force (TCF)

85. Tripura Tribal Youth Force (TTYF)

86. All Tripura Bharat Suraksha Force (ATBSF)

87. Tripura Tribal Action Committee Force (TTACF) Socialist Democratic

88. Front of Tripura (SDFT)

89. All Tripura National Force (ATNF)

90. Tripura Tribal Sengkrak Force (TTSF)

91. Tiger Commando Force (TCF)

92. Tripura Mukti Police (TMP)

93. Tripura Rajya Raksha Bahini (TRRB)

94. Tripura State Volunteers (TSV)

95. Tripura National Democratic Tribal Force (TNDTF)

96. National Militia of Tripura (NMT)

97. All Tripura Bengali Regiment (ATBR)

98. Bangla Mukti Sena (BMS)

99. All Tripura Liberation Organisation (ATLO)

100. Tripura National Army (TNA)

101. Tripura State Volunteers (TSV)

102. Borok National Council of Tripura (BNCT)

103. Mizoram People Group (MPG)

104. Bru National Liberation Front

105. Hmar People's Convention- Democracy (HPC-D)

106. Popular Front Of India (PFI)

107. Arunachal Dragon Force (ADF)

108. Left-wing Extremist groups

109. People's Guerrilla Army

110. People's War Group

111. Maoist Communist Centre

112. Communist Party of India-Maoist (CPI-Maoist)

113. Communist Party of India (Marxist Leninist) Janashakti

114. Tamil National Retrieval Troops (TNRT)

115. Popular Front Of India (PFI)

116. Students Islamic Movement of India (SIMI)



Would you like to add Aam Aadmi Party (AAP) in this list... ?

Kindly Suggest in the Comment Box.




Friday 6 February 2015

Side Effects of Secularism on Indian Politics & Mindsets





          चुनावों के माहौल में सभी वोट-लोलुपों ने ‘सेक्यूलरवाद’ के शब्द के सुर अलापना आरम्भ कर दिया है, जिन सत्ता-पिपासुओं ने भ्रष्टाचार मिटाने का ढिंढोरा पीटकर राजनीती में कदम रखा वो भी अब सलीमशाही-पोपशाही जूतियाँ चाटकर अब भ्रष्टाचार को भूलकर सेक्यूलरवाद के पीछे भाग रहे हैं ।  उनका मानना है कि भारत को लूट-लूट कर कंगाल कर देने के उपरान्त भी यदि भ्रष्टाचारी जीत जाएँ तो कोई बात नही परन्तु हम तो सेक्यूलर हैं… इस हेतु हम किसी साम्प्रदायिक व्यक्ति को नही जीतने देंगे ।

          अब यदि आप इनमे से किसी से भी पूछें कि सेक्यूलर का अर्थ क्या है तो सब अपनी अपनी ढपली बजाकर अपना एक विचित्र सा ही राग अलापना आरम्भ कर देंगे ।  इसका एक कारण यह है कि सेक्यूलर शब्द हमारी भाषा का नही अत: उसकी संकल्पना भी हमे स्पष्ट नही हो पाती । Secular शब्द उन्ही लोगों की देन है जिन लोगों ने भारत का नाम INDIA रखा है जिसका अर्थ ‘I Proud to Be an Indian’ कहने वाली प्रजाति भी उचित रूप  में नही जानती ।

          यहाँ मैं उल्लेख करना चाहूँगा कि आपके घर में यदि कोई पुरानी Oxford Dictionary उपलब्ध हो तो उसमे देखें Indian का अर्थ आपको ‘चोर, दस्यु, काला’ आदि के रूप में अवश्य मिलेगा … एक अर्थ तो यह भी है कि जिसका  विवाह ईसाई रीति रिवाज़ से नही हुआ हो वह Indian होता है ।  Internet पर उपलब्ध Oxford Dictionary की websites पर अब सब कुछ बदल दिया गया है ।

          Secular शब्द हमने अंग्रेजी से पाया, वैसे Secular शब्द का प्रयोग अर्थशास्त्र और खगोल विज्ञान में भी होता है और उन सन्दर्भों में इसके अर्थ भिन्न भिन्न होते हैं,  परन्तु जब धर्म/सम्प्रदाय का सन्दर्भ आता है तो इसका प्रयोग पहली बार  19वीं शताब्दी में यूरोप में किया गया ।  यूरोपीय समाज की एक विशेषता यह रही है कि वहाँ एक समय में एक ही विचार ‘प्रधान’ रहा है… और यह जड़ता वादी विचार प्रधानता 19वीं शताब्दी तक तो हावी ही रही… जबकि हमारी सनातन वैदिक कालीन परम्परा  ‘विचार-स्वातन्त्र्य’ की रही है ।

          ‘वादे वादे जायते तत्व बोध’ पर हमारा सदैव विश्वास रहा है, इसी हेतु सत्य की खोज हेतु चर्चा, परिचर्चा, वाद-विवाद, शास्त्रार्थ जैसी परम्पराएं प्रचलित हुईं।  इसी का परिणाम था कि हमने कि जिन वेदों को हमारे यहाँ ‘आगम-प्रमाण’ / ‘परम-प्रमाण’ / ‘स्वत: प्रमाण’ माना गया, ‘वेद-वाक्य’ शब्द जिनकी प्रमाणिकता का पर्याय बन गया…उन्हीं वेदों और अनेक वैदिक मान्यताओं का खंडन और आलोचना करने वाले वर्धमान महावीर,गौतम बुद्ध और नानक तक को भी समाज ने सम्मान दिया ।  कुछ लोगों ने तो उन्हें भगवान और भगवान का अवतार तक घोषित कर दिया… निकट भविष्य में और भी कुछ नये अवतारों से साक्षात्कार हो सकता है, एतिहासिक दृष्टि से यह ईसा से लगभग 500 वर्ष से पूर्व की बातें हैं, अभी भी चली आ रही हैं ।

          बात करें यूरोप की तो यूरोप में उस समय ‘विचार-स्वातन्त्र्य’ की क्या स्थिति थी ?  उपरोक्त प्रश्न का उत्तर इस तथ्य से स्पष्ट किया जा सकता है कि यूरोप में तब मनुष्य को विवेकशील बनाने के लिए उत्सुक, तर्क पर बल देने वाले, स्वतंत्र विचारों के पोषक और महान दार्शनिक सुकरात को (ईसा पूर्व 469-399) ईशनिंदा करने और युवाओं को पथभ्रष्ट करने का आरोप लगा कर मृत्यु दंड दिया गया… सुकरात पर समलेंगिक होने के भी आरोप लगाये गये ।

          अनेक विद्वान यह भी मानते हैं कि ईसा मसीह भी शिक्षा प्राप्त करने हेतु भारत आये थे… भारत में ईसा मसीह को वैदिक धर्म और अन्य वेद विरोधी सम्प्रदायों जैसे बोद्ध, जैन, आजीविक, सर्व-संशयवादी आदि की शिक्षाएं आदि प्राप्त कीं ।  वापिस जाकर ईसा मसीह ने जो भी शिक्षाएं दीं परन्तु उसके अनुयायी तो यूरोप के ही निवासी थे … अत: इसाई पन्थ का प्रसार होने पर वही ‘विचार-प्रधानता’ हावी रही जिससे व्यवहार में कट्टरता और असहनशीलता बनी रही ।  और ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 1700 वर्ष तक भी यह कट्टरता और असहनशीलता इतनी हावी रही कि यदि कोई व्यक्ति चर्च या पैशाचिक ग्रन्थ बाइबल की किसी भी मान्यता के विरुद्ध कुछ कहता था तो उसे कठोर दंड दिया जाता था ।

          एक बार पुन: यदि भारत के इतिहास का विश्लेष्ण करें तो जब यहाँ इस्लामिक आक्रमणों और बर्बरता से वैदिक धर्म जूझ रहा था … तब उस समय यूरोप ‘इन्क्विजिशन’ नामक बीमारी से तंग अंधी गलियों में जूझ रहा था ।

          ‘इन्क्विजिशन’ अर्थात तथाकथित धर्म-परीक्षण की इस बीमारी से यूरोपीय जन मानस इतना प्रभावित था कि कोपरनिकस, व्रुनो और गैलिलियो जैसे वैज्ञानिकों की बली ले ली । जबकि बात केवल इतनी सी ही थी कि चाँद-सूरज, ग्रह-नक्षत्र आदि के बारे में बाईबल में बताई गई बातों से यह विद्वान सहमत नही थे ।  कोपरनिकस को 16वीं शताब्दी में बहुत ही प्रताड़ित और अपमानित किया गया और उसकी मृत्यु के उपरांत उसकी पुस्तकें भी प्रतिबंधित कर दी गईं ।

          व्रुनो नामक वैज्ञानिक को तो 16वीं शताब्दी में रूई में लपेट कर जीवित ही भस्म कर दिया गया ।  गैलिलियो को 17वीं शताब्दी में नजरबंद ही कर दिया गया ।  आखिर … क्यों ? केवल विचार-प्रधानता की महा-मारी के कारण ।

          इन्क्विजिशन की महामारी से ग्रसित जो लोग अपने से भिन्न मत रखने वालों की हत्या के फतवे जारी करते हैं… उन कट्टरपंथियों की तो बात ही अलग है परन्तु आश्चर्य तब होता है जब अन्य लोग भी Secularism की संकल्पना से सहमत होते हैं ।

          भारतीय जन मानस की कठिनाई मात्र यही है कि हमने Secularism नामक शब्द को उधार ले लिया और अब इसका ब्याज ढोए जा रहे हैं ।  यही कारण है कि आज भी हमारे यहाँ Secular के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग अर्थ हैं … जैसे शासन के सन्दर्भ में जो आधारभूत शर्त है वो यह है कि धर्म/पन्थ के आधार पर भेदभाव न करना … परन्तु अपने को Secular कहने वाले लोग सबसे पहले उसी पर आघात करते हैं ।

          यह तथाकथित Secular (Pseudo-Secular) पहले तो पन्थ के आधार पर बांटते हैं तदुपरांत प्रत्येक पन्थ के लिए अलग-अलग नियम कानून बनाते हैं ।  यही कारण है कि जब भी समान नागरिक संहिता संबंधी कानून को लागू करने की बात उठती है तो उसका सबसे अधिक विरोध वे लोग करते हैं जो अपने आपको ‘Secular’ का महान झंडा-बरदार बताते नही थकते ।

          Secularism की मनमानी परिभाषा का ही यह परिणाम है कि सरकार के व्यवहार में समानता गायब है ।

          अधिक दूर न जाकर यदि निकटतम सन्दर्भों का ही विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि धर्म-निरपेक्षता की आड़ में सर्व-धर्म सामान की बात कहने वाला समाज और इसके ठेकेदार स्वयं कई हिस्सों में विभाजित हो गये जब तथाकथित धर्म-निरपेक्षता को पैरों तले रौंदते हुए एक फिल्म आई जिसमे एक ही धर्म विशेष के ऊपर साप्रदायिक हमले और टिप्पणियाँ करके प्रदूषित संदेश दिए गये l कभी भीष्म साहनी द्वारा बनाए गये भारत विभाजन पर एक धारावाहिक ‘तमस’ को प्रतिबंधित किया जाता है, क्या वो धर्म निरपेक्षता पर खतरा थी ?

अभी लगभग 2 वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी ‘विश्वरूपम’ जिस पर एक शांतिदूत समुदाय विशेष ने बहुत छाती पीटी तथा तमिलनाडू राज्य सरकार प्रतिबंधित करने को तैयार हुई, उत्तर प्रदेश में प्रतिबंधित करने का निर्णय लेने की भी बात हुई, इतना ही नही अभिनेता कमल हासन से सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना भी प्रस्तुत करवाई गई l फिर कर्नाटक राज्य ने 2014 में ही एक फिल्म ‘शिवा’ के भी कई सीन काट दिए गये l

          उसके बाद पंजाब सरकार ने भी अपना कार्य किया और एक स्वयंभू गुरु और भगवान द्वारा स्वयं को महामानव दिखा कर चमत्कार बनाई गई फिल्म को भी प्रतिबंधित किया गया l

          परन्तु एक भी राज्य सरकार ने इस देश में सबसे अधिक जनसंख्या की धार्मिक भावनाओं के प्रति उदासीनता प्रकट करके उनकी धार्मिक भावनाओं का जो राजनितिक एवं संवेधानिक बलात्कार किया उसकी आलोचना तथा उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया सडकों पर कई धार्मिक लोगों द्वारा की गई परन्तु न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही कोई प्रदेश कोर्ट और न ही राज्य सरकार भारत देश के 80 करोड़ हिन्दुओं की धार्मिक आस्था के कपड़े तार तार होने से नही बचा पाई l

          इस सन्दर्भ में न्यायालय तथा न्यायाधीशों का जो पक्ष रहा और तटस्थता तथा निष्पक्षता का जो उदाहरण सामने आया वह भी चिंता का विषय है और बहुत से प्रश्न खड़े करता है, क्या न्यायलय तथा न्यायाधीश संवेदनहीं हैं ? या वे धर्म-निरपेक्षता के दायरे में केवल बहुसंख्यक वर्ग को ही रखने की भूल कर रहे हैं ?  जो भी हो परन्तु यह पूरा प्रकरण यह शंका उत्पन्न अवश्य करता है कि न्यायालय और न्यायाधीशों की धर्म-निरपेक्षता की शिक्षा-समझ मेल नही खाती परस्पर संविधान और संवेधानिक आदेशों के साथ l

         सुप्रीम कोर्ट में आमिर खान की विवादित हिन्दू विरोधी PK फिल्म के पोस्टर के विरोध में जब एक याचिका डाली गई तो मीडिया चेनलों और समाचार पत्रों ने कुछ इस प्रकार प्रकाशित किया “If You Do not like, Do Not Watch”… सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कुछ इस प्रकार दिखाया गया, परन्तु यह पक्ष भी या तो न्यायालय या मीडिया दोनों की और संदेह के प्रश्न खड़े करता है ?

यह किस प्रकार संवेधानिक, तर्कसंगत या व्यवहारिक हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश कहें कि “चोरी हो रही है, आपको पसंद नही है तो मत देखिये”, “हत्या हो रही है आपको पसंद नही है तो मत देखिये”
“बलात्कार हो रहा है आपको पसंद नही है तो मत देखिये”,


… मेरे पास हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अभी तक कोई छायाप्रति नही है, जिसमे मैं पुख्ता रूप से कह सकूं कि न्यायलय द्वारा ऐसा कहा गया है कि नही, हो सकता है कि यह न्यायाधीशों का In House Comment हो, परन्तु फिर भी क्या यह मीडिया की अपरिपक्वता या बिकाऊ होने के सटीक प्रमाण इसी में प्राप्त हो जाते हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और टिप्पणी में अंतर को भी स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं कर पाते या करना नही चाहते या ऐसा न करने के लिए निर्देशित किया गया हो ?

         भारतीय मीडिया का नकारात्मक पक्ष तो पूरे विश्व में कुख्यात है जहां एक पत्रकार देश के प्रधानमन्त्री को अपमानित करने हेतु विदेश पहुँच कर अपनी महत्वाकांक्षाओं की कुंठा निकालते हुए अपने मालिकों को प्रसन्न करने का हर संभव प्रयास करता है l

          भारतीय मीडिया का यदि पिछले 15 वर्षों का अध्ययन करें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत में सबसे अधिक सांप्रदायिक मानसिकता इसी क्षेत्र में है, फिर चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया, विभिन्न मुद्दों को जोड़ तोड़ कर भगबान श्री राम, या शिव आदि सनातन धर्म के देवी देवताओं का अपमान करने को सदैव तत्पर रहते हैं ये, जबकि 15 वर्षों पर नकली बाबाओं से अपना चैनल चलाने हेतु यही चैनल उनका प्रचार प्रसार करने में व्यस्त रहे परन्तु अन्य सम्प्रदाय विशेष के विरुद्ध कुछ लेश मात्र भी करने का न ही उनमे सामर्थ्य है और न ही मानसिकता l

          मेरे शब्दों की प्रमाणिकता तब अधिक सटीक हो जाती है जब फ़्रांस में पत्रकारों के एक कार्यालय पर दिन दहाड़े आतंकी हमला किया गया और 12 लोगों को मार दिया गया, उसके बाद कुछ लोगों का अपहरण भी होता है, पूरा विश्व देखता है यह सब परन्तु भारत का मीडिया उस सम्प्रदाय विशेष के विरुद्ध छापे गए कार्टूनों में से एक भी कार्टून अपने चैनल पर दिखाने का पुरुषार्थ न दिखा सका, उन्हें या तो मौत का भय था या फिर राष्ट्र-चरित्र बेच कर आयात होने वाली राष्ट्रद्रोही रिश्वत के रुक जाने का l

यहाँ यह उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है कि फिल्में One Way Communication की प्रक्रिया पर चलती हैं, ऐसा नही है कि प्रत्येक सीन के बाद फिल्म को रोका जायेगा और उसका तुलनात्मक विश्लेष्ण हो सके, पूरी फिल्म निरंतर चलती है और उसके सकारात्मक तथा नकारात्मक संदेश समाज को प्रेरित और प्रदूषित करने का कार्य कर जाते हैं l

          सर्वधर्म समान कह कर अपनी ही संस्कृति का गला घोंटने के अपराध से उन सज्जनों को ये लेख बचाएगा आप स्वयं पढ़ें और औरों तक यह पहुँचाने की पावन सेवा करें l

          समय के साथ अनेक परिवर्तन होते हैं, पोशाकों में बदलाव आया, घरों की रचना, रहन-सहन में बदलाव आया, खानपान के तरीके भी बदले…..परन्तु जीवन मूल्य तथा आदर्श जब तक कायम रहेंगे तब तक संस्कृति भी कायम कहेगी l

यही संस्कृति राष्ट्रीयता का आधार होती है l
राष्ट्रीयता का पोषण यानि संस्कृति का पोषण होता है… इसे ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहा जाता है l


अंत में यह भी समझ लीजिये कि राष्ट्रवाद की भी बहुत सारी Layers हैं...

केवल राष्ट्रवाद...
हिन्दू राष्ट्रवाद...

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद... 
धार्मिक राष्ट्रवाद...
अध्यात्मिक राष्ट्रवाद... 

स्वदेशी राष्ट्रवाद आदि...  

इन समस्त राष्ट्रवाद के इतिहास तथा विचारधारा को भली भाँती समझ कर तथा इन सभी के अंतर को समझ कर ही इस युद्ध में विजयी हुआ जा सकता है, अन्यथा नही l




          सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी… जो सदैव संघर्ष संघर्षरत रहेंगे… जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे, और न ही अपने राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा ही कर पाएंगे l



जय श्री राम कृष्ण परशुराम

Sunday 1 February 2015

Genocide of Chitpawan Brahmins by Non-Violent Terrorist of Gandhi


Genocide of Chitpawan Brahmins in Pune, 
Terror of Gandhi's Non-Violence 

Targeted & Brutal Genocide of Chitpawan Brahmins in Pune, 
Maharashtra, just after the Assassination of Gandhi.


आज सुबह समाचार चेनलों में देखा 1984 के दंगों की जांच अब SIT से करवाएंगे, वोट बेंक राजनीति के मसाले से समाचारों की दुनिया महक उठी l

परन्तु कभी भी किसी भी सत्ता पक्ष या विपक्ष को आज तक पंजाब में सिक्खों द्वारा 1978 - 1993 तक जो हिन्दुओं का नरसंहार किया गया, उसके बारे में कोई बात नही करता, सोचते सोचते निष्कर्ष निकला कि उसमे भी ब्राह्मणों को ही सबसे अधिक टारगेट किया गया l

यह सब सोच ही रहा था कि एकाएक पुणे शहर में हुए चित्पावन ब्राह्मणों के नरसंहार का स्मरण हुआ,  31 जनवरी - 3 फरवरी 1948 तक पुणे में हुए चित्पावन ब्राहमणों के सामूहिक नरसंहार को आज भारत के 99% लोग संभवत: भुला चुके होंगे, कोई आश्चर्य नही होगा मुझे यदि कोई पुणे का मित्र भी इस बारे में साक्ष्य या प्रमाण मांगने लगे l

सोचने का गंभीर विषय उससे भी बड़ा यह कि उस समय न तो मोबाइल फोन थे, न पेजर, न फैक्स, न इंटरनेट... अर्थात संचार माध्यम इतने दुरुस्त नहीं थे, परन्तु फिर भी नेहरु ने इतना भयंकर रूप से यह नरसंहार करवाया कि आने वाले कई वर्षों तक चित्पावन ब्राह्मणों को घायल करता रहा l

राजनीतिक रूप से भी देखें तो यह कहने में कोई झिझक नही होगी मुझे कि जिस महाराष्ट्र के चित्पावन ब्राह्मण सम्पूर्ण भारत में धर्म तथा राष्ट्र की रक्षा हेतु सजग रहते थे... उन्हें वर्षों तक सत्ता से दूर रखा गया, अब 67 वर्षों बाद कोई प्रथम चित्पावन ब्राह्मण देवेन्द्र फडनवीस के रूप में मनोनीत हुआ है l


हिंदूवादी संगठनों द्वारा मैंने पुणे में कांग्रेसी अहिंसावादी आतंकवादियों के द्वारा चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार का मुद्दा उठाते कभी नही सुना, मैंने सदैव सोचता था कि यह विषय 7 दशक पुराना हो गया है इसलिए नही उठाते होंगे, परन्तु जब जब गाँधी वध का विषय आता है समाचार चेनलों पर तब भी मैंने किसी भी हिंदुत्व का झंडा लेकर घूम रहे किसी भी नेता को इस विषय का संज्ञान लेते हुए नही पाया l

क्या वे हिन्दू... संघ परिवार या बीजेपी के हिंदुत्व की परिभाषा के दायरे में नही आते...
क्योंकि वे हिन्दू महासभाई थे ... ?

हिन्दू के नरसंहार वही मान्य होंगे जो मुसलमानों या ईसाईयों द्वारा किये गये होंगे ?

फिर वो भले कांग्रेसी आतंकवादियों द्वारा किये गये हों, या सिख आतंकवादियों द्वारा, उनकी कोई बात नही करता इस देश में l

31 जनवरी 1948 की रात,
पुणे शहर की एक गली,
गली में कई लोग बाहर ही चारपाई डाल कर सो रहे थे ...

एक चारपाई पर सो रहे आदमी को कुछ लोग जगाते हैं और ... उससे पूछते हैं

कांग्रेसी अहिंसावादी आतंकवादी: नाम क्या है तेरा...
सोते हुए जगाया हुआ व्यक्ति ... अमुक नाम बताता है ... (चित्पावन ब्राह्मण)

अधखुली और नींद-भरी आँखों से वह व्यक्ति अभी न उन्हें पहचान पाया था, न ही कुछ समझ पाया था... कि उस पर कांग्रेस के अहिंसावादी आतंकवादी मिटटी का तेल छिडक कर चारपाई समेत आग लगा देते हैं l

चित्पावन ब्राहमणों को चुन चुन कर ... लक्ष्य बना कर मारा गया l
घर, मकान, दूकान, फेक्ट्री, गोदाम... सब जला दिए गये l

महाराष्ट्र के हजारों-लाखों ब्राह्मण के घर-मकान-दुकाने-स्टाल फूँक दिए गए। हजारों ब्राह्मणों का खून बहाया गया। ब्राह्मण स्त्रियों के साथ दुष्कर्म किये गए, मासूम नन्हें बच्चों को अनाथ करके सडकों पर फेंक दिया गया, साथ ही वृद्ध हो या किशोर, सबका नाम पूछ पूछ कर चित्पावन ब्राह्मणों को चुन चुन कर जीवित ही भस्म किया जा रहा था... ब्राह्मणों की आहूति से सम्पूर्ण पुणे शहर जल रहा था l

31 जनवरी से लेकर 3 फरवरी 1948 तक जो दंगे हुए थे पुणे शहर में उनमें सावरकर के भाई भी घायल हुए थे l

"ब्राह्मणों... यदि जान प्यारी हो, तो गाँव छोड़कर भाग जाओ.." -

31 जनवरी 1948 को ऐसी घोषणाएँ पश्चिम महाराष्ट्र के कई गाँवों में की गई थीं, जो ब्राह्मण परिवार भाग सकते थे, भाग निकले थे, अगले दिन 1 फरवरी 1948 को कांग्रेसियों द्वारा हिंसा-आगज़नी-लूटपाट का ऐसा नग्न नृत्य किया गया कि इंसानियत पानी-पानी हो गई. ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि "हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे" स्वयम एक चित्पावन ब्राह्मण थे l

पेशवा महाराज, वासुदेव बलवंत फडके, सावरकर, तिलक, चाफेकर, गोडसे, आप्टे आदि सब गौरे रंग तथा नीली आँखों वाले चित्पावन ब्राह्मणों की श्रंखला में आते हैं, जिन्होंने धर्म के स्थापना तथा संरक्ष्ण हेतु समय समय पर कोई न कोई आन्दोलन चलाये रखा, फिर चाहे वो मराठा भूमि से संचालित होकर अयोध्या तक अवध, वाराणसी, ग्वालियर, कानपूर आदि तक क्यों न पहुंचा हो ?

पेशवा महाराज के शौर्य तथा कुशल राजनितिक नेतृत्व से से तो सभी परिचित हैं, 1857 की क्रांति के बाद यदि कोई पहली सशस्त्र क्रांति हुई तो वो भी एक चित्पावन ब्राह्मण द्वारा ही की गई, जिसका नेतृत्व किया वासुदेव बलवंत फडके ने... जिन्होंने एक बार तो अंग्रेजों के कबके से छुडा कर सम्पूर्ण पुणे शहर को अपने कब्जे में ही ले लिया था l

उसके बाद लोकमान्य तिलक हैं, महान क्रांतिकारी चाफेकर बन्धुओं की कीर्ति है, फिर सावरकर हैं जिन्हें कि वसुदेव बलवंत फडके का अवतार भी माना जाता है, सावरकर ने भारत में सबसे पहले विदेशी कपड़ों की होली जलाई, लन्दन गये तो वहां विदेशी नौकरी स्वीकार नही की क्योंकि ब्रिटेन के राजा के अधीन शपथ लेना उन्हें स्वीकार नही था, कुछ दिन बाद महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा जी से मिले तो उन्हें न जाने 5 मिनट में कौन सा मन्त्र दिया कि ढींगरा जी ने तुरंत कर्जन वायली को गोली मारकर उसके कर्मों का फल दे दिया l

सावरकर के व्यक्तित्व को ब्रिटिश साम्राज्य भांप चुका था, अत: उन्हें गिरफ्तार करके भारत लाया जा रहा था पानी के जहाज़ द्वारा जिसमे से वो मर्सिलेस के समुद्र में कूद गये तथा ब्रिटिश चैनल पार करने वाले पहले भारतीय भी बने, बाद में सावरकर को दो आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई l

यह सब इसलिए था क्यूंकि अंग्रेजों को भय था कि कहीं लोकमान्य तिलक के बाद वीर सावरकर कहीं तिलक के उत्तराधिकारी न बन जाएँ, भारत की स्वतन्त्रता हेतु l इसी लिए शीघ्र ही अंग्रेजों के पिठलग्गु विक्रम गोखले के चेले गांधी को भी गोखले का उत्तराधिकारी बना कर देश की जनता को धोखे में रखने का कार्य आरम्भ किया l दो आजीवन कारावास की सज़ा की पूर्णता के बाद सावरकर ने अखिल भारत हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्षता स्वीकार की तथा हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाया l


उसके बाद हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे जी का शौर्य आता है, गोडसे जी ने दुरात्मा मोहनदास करमचन्द ग़ाज़ी का वध क्यों किया उससे सम्बन्धित समस्त तथ्यों पर मैं पिछले लेख में कर सकता हूँ l
http://lovybhardwaj.blogspot.in/2015/01/unveil-mystery-of-gandhi-vadh-who-is.html

हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल जी गोडसे भी गांधी वध में जेल में रहे, बाहर निकल कर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने पुरुषार्थ और शालीनता के अनूठे संगम के साथ कहा:
""गाँधी जब जब पैदा होगा तब तब मारुगा"।
यह शब्द गोपाल गोडसे जी के थे जब जेल से छुट कर आये थे l

तत्कालीन दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक की और से किसी भी दंगापीड़ित को किसी भी प्रकार की सहायता आदि उपलब्ध न करवाई गई... न तन से, न मन से, न ही धन से, बल्कि आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर ने तो नेहरु तथा पटेल को पत्र लिख कर यह तक कह डाला कि हमारा हिन्दू महासभा से कोई लेना देना नही, तथा सावरकर से भी मात्र वैचारिक सम्बन्ध है, उससे अधिक और कुछ नही l

आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर ने इससे भी अधिक बढ़-चढ़ कर  अपनी पुस्तक विचार-नवनीत में यहाँ तक लिख दिया कि नाथूराम गोडसे मानसिक विक्षिप्त था l

अभी 25 नवम्बर 2014 को गोडसे फिल्म का MUSIC LAUNCH का कार्यक्रम हुआ था उसमे हिमानी
सावरकर जी भी आई थीं, जो लोग हिमानी सावरकर जी को नही जानते, मैं उन्हें बता दूं कि वह वीर सावरकर जी की पुत्रवधू हैं तथा गोपाल जी गोडसे जी की पुत्री हैं, अर्थात नथुराम गोडसे जी की भतीजी भी हैं l

हिमानी जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि उनका जीवन किस प्रकार बीता, विशेषकर बचपन...वह मात्र 10 महीने की थीं जब गोडसे जी, करकरे जी, पाहवा जी आदि ने गांधी वध किया l

उसके बाद पुणे दंगों की त्रासदी ने पूरे परिवार पर चौतरफा प्रहार किया l

स्कूल में बहुत ही मुश्किल से प्रवेश मिला,
प्रवेश मिला तो ... आमतौर पर भारत में 5 वर्ष का बच्चा प्रथम कक्षा में बैठता है l

एक 5 वर्ष की बच्ची की सहेलियों के माता-पिता अपनी बच्चियों को कहते थे कि हिमानी गोडसे (सावरकर) से दूर रहना... उसके पिता ने गांधी जी की हत्या की है l

संभवत: इन 2 पंक्तियों का मर्म हम न समझ पाएं... परन्तु बचपन बिना सहपाठियों के भी बीते तो कैसा बचपन रहा होगा... मैं उसका वर्णन किन्ही शब्दों में नही कर सकता, ऐसा असामाजिक, अशोभनीय, अमर्यादित दुर्व्यवहार उस समय के लाखों हिन्दू महासभाईयों के परिवारों तथा संतानों के साथ हुआ l

आस पास के लोग... उन्हें कोई सम्मान नही देते थे, हत्यारे परिवार जैसी संज्ञाओं से सम्बोधित करते थे l

गांधी वध के बाद लगभग 20 वर्ष तक एक ऐसा दौर चला कि लोगों ने हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता को ... या हिन्दू महासभा के चित्पावन ब्राह्मणों को नौकरी देना ही बंद कर दिया l उनकी दुकानों से लोगों ने सामान लेना बंद कर दिया l

चित्पावन भूरी आँखों वाले ब्राह्मणों का पुणे में सामूहिक बहिष्कार कर दिया गया था गोडसे जी के परिवार से जुड़े लोगो ने 50 वर्षों तक ये निर्वासन झेला. सारे कार्य ये स्वयं किया करते थे l एक अत्यंत ही तंग गली वाले मोहल्ले में 50 वर्ष गुजारने वाले चितपावन ब्राह्मणों को नमन l


अन्य राज्यों के हिन्दू महासभाईयों के ऊपर भी विपत्तियाँ उत्पन्न की गईं... जो बड़े व्यवसायी थे उनके पास न जाने एक ही वर्ष में और कितने वर्षों तक आयकर के छापे, विक्रय कर के छापे, आदि न जाने क्या क्या डालकर उन्हें प्रताड़ित किया गया l

चुनावों के समय भी जो व्यवसायी, व्यापारी, उद्योगपति आदि यदि हिन्दू महासभा के प्रत्याशियों को चंदा देता था तो अगले दिन वहां पर आयकर विभाग के छापे पड़ जाया करते थे l

गांधी वध पुस्तक छापने वाले दिल्ली के सूर्य भारती प्रकाशन के ऊपर भी न जाने कितनी ही बार... आयकर, विक्रय कर, आदि के छापे मार मार कर उन्हें प्रताड़ित किया गया, ये उनका जीवट है कि वे आज भी गांधी वध का प्रकाशन निर्विरोध कर रहे हैं ... वे प्रसन्न हो जाते हैं जब उनके कार्यालय में जाकर कोई उन्हें ... "जय हिन्दू राष्ट्र" से सम्बोधित करता है l

हिन्दू महासभाईयों को उनके प्रकाशन की पुस्तकों पर 40% छूट आज भी प्राप्त होती है l

आज भी हिन्दू महासभाईयों के साथ भेदभाव जारी है l

...और आज कई राष्ट्रवादी यह लांछन लगाते नही थकते...
"कि हिन्दू महासभा ने आखिर किया क्या है ?"

कई बार बताने का मन होता है ... तो बता देते हैं कि क्या क्या किया है...
साथ ही यह भी बता देते हैं कि आर.एस.एस को जन्म भी दिया है l

परन्तु कभी कभी ... परिस्थिति इतनी दुखदायी हो जाती है कि ... निशब्द रहना ही श्रेष्ठ लगता है l

विडम्बना है कि ... ये वही देश है... जिसमे हिन्दू संगठन ... सावरकर की राजनैतिक हत्या में नेहरु के सहभागी भी बनते हैं और हिन्दू राष्ट्रवाद की धार तथा विचारधारा को कमजोर करते हैं l


आप सबसे विनम्र अनुरोध है कि अपने इतिहास को जानें, आवश्यक है कि अपने पूर्वजों के इतिहास को भली भाँती पढें और समझने का प्रयास करें.... तथा उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखें l

जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु  हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैं l


सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ..... जो सदैव संघर्षरत रहेंगे l
जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगे l


जय श्री राम कृष्ण परशुराम